पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/३७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३५६)
(१) क्रियार्थक संज्ञा के मेल से बनी हुईं।
(२) वर्तमानकालिक कृदंत के मेल से बनी हुईं।
(३) भूतकालिक कृदंत के मेल से बनी हुईं।
(४) पूर्वकालिक कृदंत के मेल से बनी हुईं।
(५) अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के मेल से बनी हुईं।
(६) पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के मेल से बनी हुई हैं।
(७) संज्ञा वा विशेषण से बनी हुईं।
(८) पुनरुक्त संयुक्त क्रियाएँ।

४०३—संयुक्त क्रिया में नीचे लिखी सत्रह सहकारी कियाएँ आती हैं:—होना, पड़ना, चाहना, चुकना, सकना, पानी, देना, लगना, लेना, रहना, डालना, जाना, करना, आना, उठना, बैठना, बनना। इनमें से बहुधा सकना और चुकना के छोड़ शेष क्रियाएँ स्वतन्त्र भी हैं और अर्थ के अनुसार दूसरी सहकारी क्रियाओं से मिलकर स्वय संयुक्त क्रियाएँ हो सकती हैं।

(१) क्रियार्थक सज्ञा के मेल से बनी हुई संयुक्त क्रियाएँ

४०४—क्रियार्थक संज्ञा के मेल से बनी हुई संयुक्त क्रिया में क्रियार्थक संज्ञा देा रूपों में आती हैं—(१) साधारण रूप में (२) विकृत रूप में (अं॰—३०९)।

४०५—क्रियार्थक संज्ञा के साधारण रूप के साथ "पड़ना," "होना" वा "चाहिये" क्रियाओं को जोड़ने से आवश्यकता-बोधक संयुक्त क्रिया बनती है; जैसे, करना पड़ता है, करना चाहिये। जब इन संयुक्त क्रियाओं में क्रियार्थक संज्ञा का प्रयोग प्रायः विशेषण के समान होता है तब वह विशेष्य के लिंग-वचन के अनुसार बदलती है (अं॰—३७२-अ); जैसे, कुलियों की मदद करनी चाहिये। मुझे दवा पीनी पड़ेगी। "जो होनी है से