पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/३७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३५७)


होगी” (सर०)। “पड़ना”, “होना” और “चाहिये” के अर्थ और प्रयोग की विशेषता नीचे लिखी जाती हैः―

पड़ना―इससे जिस आवश्यकता का बोध होता है उसमे पराधीनता का अर्थ गर्भित रहता है; जैसे, मुझे वहाँ जाना पड़ता है।

होना―इस सहकारी क्रिया से आवश्यकता वा कर्तव्य के सिवा भविष्यत् काल का भी बोध होता है, जैसे, “इस सगुन से क्या फल होना है।” (शकु०)। यह क्रिया वहुधा सामान्य कालों ही में आती है, जैसे, जाना है, जाना था, जाना होगा, जाना होता, इत्यादि।

चाहिये―जब इसका प्रयोग स्वतत्र क्रिया के समान (अं०― ३९४-ख) होता है तब इसका अर्थ “इष्ट वा अपेक्षित” होता है, परतु संयुक्त क्रिया में इसका अर्थ “आवश्यकता वा कर्त्तव्य” होता है। इसका प्रयोग बहुधा सामान्य वर्त्तमान और सामान्य भुतकाल ही में होता है, जैसे, मुझे जाना चाहिये, मुझे जाना चाहिये था। “चाहिये” भूतकालिक कृदंत के साथ भी आता है।

(अ०―४१०)।

४०६―क्रियार्थक संज्ञा के विकृत रूप से तीन प्रकार की संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं―(१) आरंभ-बोधक (२) अनुमति-बोधक (३) अवकाश-बोधक।

(१) आरंभ-बोधक क्रिया “लगता” क्रिया के येाग से बनती है, जैसे, वह कहने लगा।

(अ) आरंभ-बोधक क्रिया का सामान्य भूतकाल, “क्यो” के साथ, सामान्य भविष्यत् की असंभवता के अर्थ में आता है; जैसे, हम वहाँ क्यों जाने लगे= हम वहाँ नहीं जायँगे। “इस रूप- वान युवक के छोड़कर वह हमें क्यों पसंद करने लगी।” (रघु०)।