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"पड़ना" क्रिया सभी सकर्मक क्रियाओं के साथ नहीं आती। अकर्मक क्रियाओं के साथ इसका अर्थ "घटना" होता है, जैसे, गिर पड़ना, चौंक पड़ना, कूद पड़ना, हँस पड़ना, आ पड़ना, इत्यादि।

"बनना" के साथ "पड़ना" के बदले इसी अर्थ में कभी-कभी "आना" क्रिया आती है; जैसे, बात बन पड़ी = बन आई। "हैं बनियाँ बनि आये के साथी।"

डालना—यह क्रिया केवल सकर्मक क्रियाओं के साथ आती है। इससे बहुधा उग्रता का बोध होता है; जैसे, फोड़ डालना, काट डालना, मार डालना, फाड़ डालना, तोड़ डालना, कर डालना, इत्यादि।

"मार देना" का अर्थ "चोट पहुँचाना" और "मार डालना" का अर्थ "प्राण लेना" है।

रहना—यह क्रिया बहुधा भूतकालिक कृदन्तों से बने हुए कालों में आती है। इसके असिन्न-भूत और पूर्णभूत कालों से क्रमशः अपूर्णवर्तमान और अपूर्णभूत का बोध होती है, जैसे, लड़के खेल रहे हैं। लड़के खेल रहे थे। (अ॰—३५८, टी॰)। दूसरे कालों में इसका प्रयोग बहुधा अकर्मक क्रियाओं के साथ होता है, जैसे, बैठ रहो, वह सो रहा, हम पढ़ रहेंगे।

रखना—इस क्रिया का व्यवहार अधिक नहीं होता और अर्थ में यह प्रायः "लेना" के समान है, जैसे, समझ रखना, रोक रखना, इत्यादि। "छोड़ रखना" के बदले बहुधा 'रख छोड़ना' आता है।

निकलना—यह क्रिया भी कचित् आती है। इसका अर्थ प्रायः "पड़ना" के समान है, और उसीके समान यह बहुधा अकर्मक क्रियाओं के साथ आती है; जैसे, चल निकलना, आ निकलना, इ॰।