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(७) संज्ञा वा विशेषण के योग से बनी हुई।

४२०—संज्ञा (वा विशेषण) के साथ क्रिया जोड़ने से जो संयुक्त क्रिया बनती है उसे नाम-बोधक क्रिया कहते हैं; जैसे, भस्म होना, भस्म करना, स्वीकार होना, स्वीकार करना, मोल लेना, दिखाई देना।

सू॰—नामबोधक संयुक्त क्रियाओं में केवल वही संज्ञाएँ अथवा विशेषण आते है जिनका संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ नहीं होता। "ईश्वर ने लड़के पर दया की", इस वाक्य मे "दया करना" संयुक्त क्रिया नहीं है, क्योंकि "दया" संज्ञा "करना" किया या कर्म है; परन्तु "लड़का दिखाई दिया", इस वाक्य में "दिखाई देना" सयुक्त क्रिया है, क्योंकि "दिखाई" संज्ञा का "दिया" से कोई सबंध नहीं है। यदि "दिखाई" को "दिया" क्रिया का कर्म मानें तो "लड़का" शब्द सप्रत्यय कर्त्ता कारक में होना चाहिये और क्रिया कर्मणि प्रयोग में आनी चाहिये, जैसे "लड़के ने दिखाई दी", पर यह प्रयोग अशुद्ध है; इसलिए "दिखाई देना" के संयुक्त क्रिया मानने ही में व्याकरण के नियमों का पालन हो सकता है। इसी प्रकार "मैं आपकी योग्यता स्वीकार करता हूँ" इस वाक्य में "करता हूँ" क्रिया का कर्म, "स्वीकार" नहीं है, किन्तु "स्वीकार करता हूँ" संयुक्त क्रिया की कर्म "योग्यता" है।

४२१—नामबोधक संयुक्त क्रियाओं में "करना", "होना" (कभी-कभी "रहना") और "देना" आते हैं। "करना" और "होना के साथ बहुधा संस्कृत की क्रियार्थक सज्ञाएँ और "देना" के साथ हिन्दी की भाववाचक संज्ञाएँ आती हैं; जैसे,

होना

स्वीकार होना, नाश होना, स्मरण होना, कंठ होना, याद होना, विसर्जन होना, आरंभ होना, शुरू होना, सहन होना, भस्म होना, विदा होना।