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जैसे, अपना काम देखो-भालो, यह वहाँ जाया-आया करता है, जहाज यहाॅ आयँ-जायँगे, मिल-जुलकर, बोलता-चालता हुआ।

४२३—संयुक्त क्रियाओ में कभी-कभी सहकारी क्रिया के कृदंत के आगे दूसरी सहकारी क्रिया आती है जिससे तीन अथवा चार शब्दों की भी संयुक्त क्रिया बन जाती है; जैसे, "उसकी तत्काल सफाई कर लेना चाहिये"। (परी॰)। "उन्हे वह काम करना पड़ रहा है। (आदर्श॰)। "हम यह पुस्तक उठा ले जा सकते हैं।" इत्यादि।

४२४—संयुक्त क्रियाओं में अंतिम सहकारी क्रिया के धातु को पिछले कृदंत वा विशेषण के साथ मिलाकर संयुक्त धातु मानते हैं; जैसे, "उठा ले जा सकते हैं" क्रिया में "उठा ले जा सक" धातु माना जायगा। संस्कृत में भी ऐसे ही संयुक्त धातु माने जाते हैं; जैसे, प्रमाणीकृ, पयोधरीभू, इत्यादि।

४२५—संयुक्त क्रियाओं में केवल नीचे लिखी सकर्मक क्रियाएँ कर्मवाच्य में आती हैं—

(१) आवश्यकता-बोधक क्रियाएँ जिनमे "होना" और "चाहिये" का योग होता है; जैसे, चिट्ठी लिखी जानी थी। काम देखा जाना चाहिये, इत्यादि।

(२) आरभ-बोधक, जैसे, वह विद्वान् समझा जाने लगा है। आप भी बड़े में गिने जाने लगे।

(३) अवधारण-बोधक कियाएँ जो "लेना", "देना", "डालना", "रखना" के योग से बनती हैं; चिट्ठी भेज दी जाती है, काम कर लिया गया, पत्र फाड़ डाला जायगा, इत्यादि।

(४) शक्ति-बोधक क्रियाएँ, जैसे चिट्ठी भेजी जा सकती है, काम न किया जा सका, इत्यादि।