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(५) पूर्णता-बोधक क्रियाएँ; जैसे, पानी लाया जा चुका। कपड़ा सिया जा चुकेगा, इत्यादि।

सु॰—आरंभ-बोधक, शक्ति-बोधक और पूर्णता-बोधक क्रियाओं में मुख्य क्रिया के पश्चात् "जाना" क्रिया के रूप आते हैं, और फिर सहकारी क्रिया जोड़ी जाती है।

(६) नाम-बोधक क्रियाएँ जे बहुधा संस्कृत क्रियार्थक संज्ञा के योग से बनती हैं, जैसे, यह बात स्वीकार की गई, कथा श्रवण की जायगी, हाथी मोल लिया जाता है, इत्यादि।

(७) पुनरुक्त क्रियाएँ , जैसे, काम देखा-भाल नही गया, बात समझी-बूझी जायेगी, इत्यादि।

(८) नित्यता-बोधक, जैसे, काम किया जाता रहेगा = होता रहेगा। चिट्ठी लिखी जाती रही।

४२६—भाववाच्य में केवल नाम-बोधक और पुनरुक्त अकर्मक क्रियाएं आती हैं, जैसे, अन्याय देखकर किसी से चुप नहीं रहा जाता। लड़के से कैसे चला-फिरा जायगा, इत्यादि।


आठवाँ अध्याय।

विकृत अव्यय।

[शब्दों के रूपांतर के प्रकरण में अव्ययों का उल्लेख न्यायसंगत नहीं है, क्येांकि अव्ययो में लिंग वचनादि के कारण विकार (रूपातर) नही होता। पर भाषा में निरपवाद नियम बहुत थोड़े पाये जाते है। भाषा-संबंधी शास्त्रों में बहुधा अनेक अपवाद और प्रत्ययवाद रहते है। पूर्व में अव्ययो को अधिकारी शब्द कहा गया है, परंतु कोई-कोई अव्यय विकृत रूप में भी आते हैं। इस अध्याय में इन्ही विकृत अव्यये का विचार किया जायगा। ये सब अव्यय बहुधा आकारांत होने के कारण आकारांत विशेषणों के समान उपयेाग में आते हैं और उन्हीं के समान लिंग-वचन के कारण इनका रूप पलटता है।]