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  ४२७—क्रियाविशेषण—जब आकारांत विशेषणों का प्रयोग क्रियाविशेषणों के समान होता है तब उनमे बहुधा रूपांतर होता है। इस रूपांतर के नियम ये हैं—

(अ) परिमाणवाचक वा प्रकारवाचक क्रियाविशेषण जिस विशेषण की विशेषता बताते हैं उसी के विशेष्य के अनुसार उनमें रूपांतर होता है; जैसे, "जो जितने बड़े हैं उनकी ईर्षा उतनी ही बड़ी है"। (सत्य॰)। "शास्त्राभ्यास उसका जैसा बढ़ा हुआ था, उद्योग भी उसका वैसा ही अद्भुत था" (रघु॰)। "नर-पर्वत के कसूर बड़े भारी हैं। (विचित्र॰)।
(आ) अकर्मक क्रियाओं के कर्त्तरिप्रयोग में आकारांत क्रियाविशेषण कर्त्ता के लिंग वचन के अनुसार बदलते हैं; जैसे, "वे उनसे इतने हिल गये थे। (रघु॰)। "वृक्षों की जड़ पवित्र बरहों के प्रवाह से धुलकर कैसी चमकती है। (शकु)। "प्यादे तें फरजी भयो तिरछो तिरछो जात"। (रहीम॰)। "जैसी चले बयार।( कुण्ड॰)।

अप॰—इस प्रकार के वाक्यों में कभी-कभी क्रियाविशेषण का रूप अविकृत ही रहता है, जैसे, "जितना वे पहले तैयार रहते थे उतना पीछे नहीं रहते"। (स्वा॰)। "यहाँ की स्त्रियाँ डरपोक और बेवकूफ होने से उतना ही लजाती हैं जितना कि पुरुष"। (विचित्र॰)। ये प्रयोग अनुकरणीय नहीं हैं, क्योंकि इन वाक्यों में आये हुए शब्द शुद्ध क्रियाविशेषण नहीं हैं। वे मूल-विशेषण होने के कारण संज्ञा और क्रिया दोनों से समान संबंध रखते हैं।

(इ) सकर्मक कर्त्तरि और कर्मणि-प्रयोगों में प्रकृत क्रिया-विशेषण कर्म के लिंग-वचन के अनुसार बदलते हैं; जैसे, "एक बंदर किसी महाजन् के बाग में जा कर -पके फल मनमाने खाता था"। "खंबे जमीन में सीधे गाड़े गये। (विचित्र॰)।