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४३२—प्रत्यर्यों से बने हुए शब्दों के दो मुख्य भेद हैं—कृदंत और तद्धित। धातुओं से परे जे प्रत्यय लुगाये जाते हैं उन्हें कृत् कहते हैं, और कृत् प्रत्ययों के योग से जो शब्द बनते हैं वे कृदंत कहलाते हैं। धातुओं को छोड़कर शेष शब्दों के आगे प्रत्यय लगाने से जो शब्द तैयार होते हैं उन्हें तद्धित कहते हैं।

सू॰—हिंदी-भाषा में जो शब्द प्रचलित है उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनके विषय में यह निश्चय नहीं किया जा सकता कि उनकी व्युत्पत्ति कैसे हुई। इस प्रकार के शब्द देशज कहलाते है। इन शब्दों की संख्या बहुत थोड़ी है और संभव है कि आधुनिक आर्यभाषाओं की बढनों के नियमों की अधिक खोज और पहचान होने से अत में इनकी संख्या बहुत कम हो जायगी। देशज शब्दों के छोढ़कर हिंदी के अधिकांश शब्द दूसरी भाषाओं से आये है जिनमें संस्कृत, उर्दू और आजकल अँगरेजी मुख्य है। इनके सिवा मराठी और बँगला भाषाओं से भी हिंदी का थोडा बहुत समागम हुआ है। व्युत्पत्तिप्रकरण में पूर्वोक्त भाषाओं के शब्दों को अलग-अलग विचार किया जायगा।

दूसरी भाषाओं से और विशेषकर संस्कृत से जो शब्द मूल शब्दों में कुछ विकार होने पर हिंदी में रूढ़ हुए है वे तद्भव कहलाते हैं। दूसरे प्रकार के संस्कृत-शब्दों को तत्सम कहते हैं। हिंदी में तत्सम शब्द भी आते है। इस प्रकरण में केवल तत्सम शब्दों का विचार किया जायगा, क्योंकि तद्भव शब्दों की व्युत्पत्ति का विचार करना व्याकरण की विषय नहीं, किंतु कोश का है।

हिंदी में जो यौगिक शब्द प्रचलित हैं वे बहुधा उसी एक भाषा के प्रत्ययों और शब्दों के योग से बने है जिस भाषा से वे आये हैं, परंतु कोई कोई शब्द ऐसे भी हैं जो दो भिन्न-भिन्न भाषाओं के शब्दों और प्रत्ययों के योग से बने है। इस बात का स्पष्टीकरण यथास्थान किया जायगा।