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दूसरा अध्याय।
उपसर्ग।

४३३—पहले संस्कृत उपसर्ग मुख्य अर्थ और उदाहरण सहित दिये जाते हैं। संस्कृत में इन उपसर्गों को धातुओं के साथ जोड़ने से उनके अर्थ में हेरफेर होता है*[१], परंतु उस अर्थ का स्पष्टीकरण हिंदी-व्याकरण का विषय नहीं है। हिंदी में उपसर्ग-युक्त जो संस्कृत तत्सम शब्द आते हैं उन्हीं शब्दों के संबंध में यहाँ उपसर्गों का विचार करना कर्त्तव्य है। ये उपसर्ग कभी-कभी निरे हिंदी शब्दों में लगे हुए भी पाये जाते हैं जिनके उदाहरण यथास्थान दिये जायँगे।

(क) संस्कृत उपसर्ग।

अति= अधिक, उस पार, ऊपर, जैसे, अतिकाल, अतिरिक्त, अतिशय, अत्यंत, अत्याचार।

सू॰—हिंदी में 'अति' इसी अर्थ में स्वतंत्र शब्द के समान भी प्रयुक्त होता है, जैसे, "अति बुरी होती है।" "अति संघर्षण" (राम॰)।

अधि= ऊपर, स्थान में, श्रेष्ठ, जैसे, अधिकरण, अधिकार, अधिपाठक, अधिराज, अधिष्ठाता, अध्यात्म।

अनु= पीछे, समान , जैसे, अनुकरण, अनुक्रम, अनुग्रह, अनुचर, अनुज, अनुताप, अनुरूप, अनुशासन, अनुस्वार।

अप= बुरा, दीन, विरुद्ध, अभाव, इत्यादि, जैसे, अपकीर्त्ति, अपभ्रश, अपमान, अपराध, अपशब्द, अपसव्य, अपहरण।

अभि= ओर, पास, सामने; जैसे, अभिप्राय, अभिमुख, अभिमान, अभिलाष, अभिसार, अभ्यागत, अभ्यास, अभ्युदय।


  1. उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।
    प्रहाराहारसहारविहारपरिहारवत्॥