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ग्रह ( पकडना )---हि व्यधु ( मारना )- व्याध

रम् ( क्रोड़ा करना )----राम

{ भाववाचक )---

कम् ( इच्छा करना )--कमि क्रुधू ( क्रोध करना )--क्रोध

खिद् ( उदास हेना)-खेद चि (इकट्ठा करना)—(सं)चय

जि ( जीतना )-जय मुह, ( अचेत होना)-मेह

ती ( ले जाना )—नय रु ( शब्द करनी )-रव

अक ( कत्तवाचक)--

कृकारक

नृत्---नर्तक

गै–गायक

पू ( पवित्र करना }--पावक

दो -दायक

युज़ (जाड़ना )--योजक

लिखू-लेखक।

तु ( तरना )--तारक

मृ ( मरना )-मारक पठ्-पाठक।

नी–नायक

| पच-पाचक

अत्----इस प्रत्यय के लगाने से ( संस्कृत में ) वर्तमानकालिक कृदंत बनता है, पर तु उसका प्रचार हिंदी में नहीं है । तथापि जगत्, जगती, दमयंती आदि कई सज्ञाएँ मूल कृदत हैं। अन ( कत्तृवाचक )---

नंद ( प्रसन्न होना ) --नदन मद् ( पागल हेाना )-मदन रम्---सरण ऋ--श्रवण रु-रावण मुहू-मोहन सुदू(मारना)--(मधु) सूदन साधु-साधन ५---पोवन भाववाचक )-- सह–सहनशी शी( सेना )--शयन था----स्थान