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(आ) किसी-किसी धातुओं में और दोनों प्रत्ययों के लगने से दो-दो रूप होते हैं।

पूर्—पूरित, पूर्ण, त्रा—त्रात, त्राण।

(इ) के स्थान मे कभी-कभी क, म, व आते हैं।

शुष् (सूखना)=शुष्क, क्षै—क्षाम, पच्—पक्व।

ता (तृ)—(कर्त्तृवाचक)—

मूल प्रत्यय तृ है, पर तु इस प्रत्ययवाले शब्दों की प्रथमा के पुल्लिंग एकवचन का रूप ताकारांत होता है, और वही रूप हिंदी में प्रचलित है। इसलिए यहाँ ताकारांत उदाहरण दिये जाते हैं।

दा—दाता नी—नेता श्रु—श्रोता
वच्—वक्ता जि—जेता भृ—भर्ता
कृ—कर्ता भुज्—भोक्ता हृ—हर्त्ता

[सू॰—इन शब्दों का स्त्रीलिंग बनाने के लिए (हिंदी में) तृ प्रत्यवात शब्द में ई लगाते हैं (अ॰—२७६ इ)। जैसे, ग्रंथकर्त्री, धात्री, कवयित्री।]

तव्य (योग्यार्थक)—

कृ—कर्तव्य भू—भवितव्य ज्ञा—ज्ञातव्य
दृश्—द्रष्टव्य श्रु—श्रोतव्य दा—दातव्य
पठ्—पठितव्य वच्—वक्तव्य

ति (भाववाचक)—

कृ—कृति प्री—प्रीति शक्—शक्ति
स्मृ—स्मृति री—रीति स्था—स्थिति
(अ) कई-एक नकारांत और मकारांत धातुओं के अंत्याक्षर का

लोप हो जाता है, जैसे,

मन्—मति, क्षण्—क्षति, गम्—गति, रम्—रति, यम्—यति।

(आ) कही-कहीं संधि के नियमों से कुछ रूपांतर हो जाता है।

बुध्—बुद्धि, युज्—युक्ति, सृज्—सृष्टि, दृश्—दृष्टि, स्था—स्थिति।