पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४०१)


(विविध अर्थ में)—

रोम—रोमश, कर्क—कर्कश।

शः (रीतिवाचक)—

क्रमश:, अक्षरशः, शब्दशः, अल्पशः, केटिश।

सात् (विकारवीचक)—

भस्म—भस्मसात्, अग्नि—अग्निसात्,
जल—जलसात्, भूमि—भूमिसात्।

[सू॰—ये शब्द बहुधा होना या करना क्रिया के साथ आते हैं।

[सू॰—हिंदी भाषा दिन-दिन बढती जाती है और उसे अपनी वृद्धि के लिए बहुधा संस्कृत के शब्द और उनके साथ उसके प्रत्यय लेने की आवश्यकता पड़ती है; इसलिए इस सूची में समय-समय पर और भी शब्दों तथा प्रत्ययों का समावेश हो सकता है। इस दृष्टि से इस अध्याय को अभी अपूर्ण ही समझना चाहिये। तथापि वर्त्तमान हिंदी की दृष्टि से इसमे प्राय वे सब शब्द और प्रत्यय आ गये हैं जिनका प्रचार अभी हमारी भाषा में है।]

४३६—ऊपर लिखे प्रत्ययों के सिवा संस्कृत में कई एक शब्द ऐसे हैं जे समास में उपसर्ग अथवा प्रत्यय के समान प्रयुक्त होते हैं। यद्यपि इन शब्दों में स्वतंत्र अर्थ रहता है जिसके कारण इन्हें शब्द कहते हैं, तथापि इनका स्वतंत्र प्रयोग बहुत कम होता है। इसलिए इन्हें यहाँ उपसर्गो और प्रत्ययों के साथ लिखते हैं।

जिन शब्दों के पूर्व * यह चिह्न है उनका प्रयोग बहुधा प्रत्ययो ही के समान होता है।

अधीन—स्वाधीन, पराधीन, दैवाधीन, भाग्याधीन।

अंतर—देशातर, भाषातर, मन्त्रंतर, पाठांतर, अर्था तर, रूपातर।

अन्वित—दु:खान्वित, दोषान्वित, भयान्वित, क्रोधान्वित, माहान्वित, लोभान्वित।

२६