पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४०५)


साध्य—द्रव्यसाध्य, कष्टसाध्य, यत्नसाध्य।

  • स्थ (स्था धातु का अंश=रहनेवाला)—

गृहस्थ, मार्गस्थ, तटस्थ, स्वस्थ, उदरस्थ, अंतःस्थ।

हत—हतभाग्य, हतवीर्य, हतबुद्धि, हताश।

हर (हर्ता, हारक, हारी)=पापहर, रोगहर, दुःखहर, दोषहर्ता, दुःखहर्ता, श्रमहारी, तापहारी, वातहारिक।

हीन—हीनकर्म, हीनबुद्धि, हीनकुल, गुणहीन, धनहीन, मति- हीन, विद्याहीन, शक्तिहीन।

  • ज्ञ (ज्ञा धातु का अंश=जाननेवाला)—

शास्त्रज्ञ, धर्मज्ञ, सर्वज्ञ, मर्मज्ञ, विज्ञ, नीतिज्ञ, विशेषज्ञ, अभिज्ञ (ज्ञाता)।


चौथा अध्याय।

हिंदी-पत्यय।

(क) हिंदी-कृदंत।

—यह प्रत्यय अकारांत धातुओं में जोड़ा जाता है और इसके येाग से भाववाचक संज्ञाएँ बनती है; जैसे,

लूटना—लूट। मारना—मार।
जाॅचना—जॉच। चमकना—चमक।
पहुॅचना—पहुँच। समझना—समझ।
देखना भालना—देखभाल। उछलना कूदना—उछलकूद।

[सू॰—"हिंदी-व्याकरण" में इस प्रत्यय का नाम "शून्य" लिखा गया है जिसका अर्थ यह है कि धातु में कुछ भी नहीं जोड़ा जाता और उसीका प्रयोग भाववाचक संज्ञा के समान होता है। यथार्थ में यह बात ठीक है, पर हमने शून्य के बदले 'प्र' इसलिए लिखा है कि शून्य शब्द में होनेवाला भ्रम