पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४०७)
झगड़ना—झगड़ा छापना—छापा रगड़ना—रगड़ा
झटकना—झटका उतारना—उतारा तोड़ना—तोड़ा
(अ) इस प्रत्यय के लगने के पूर्व किसी-किसी धातु के उपांत्य स्वर में गुण होता है; जैसे,
मिलना—मेला टूटना—टोटा झुकना—झोंका
(आ) समास में इस प्रत्यय के योग से कई एक कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं, जैसे,
(घुड—) चढ़ा (अँग—) रखा (भड़—) भूँजा
(कठ—) फोड़ा (गँठ—) कटा (मन—) चला
(मिठ—) बोला ले—लेवा दे—देवा
(इ) भूतकालिक कृदंत इसी प्रत्यय के योग से बनाये जाते हैं, जैसे,
मरना—मरा धोना—धोया खीचना—खींचा
पड़ना—पड़ा बनाना—बनाया बैठना—बैठा
(ई) कोई-कोई करणवाचक संज्ञाएँ, जैसे,
झुलना—झूला ठेलना—ठेला फाँसना—फाँसा झारना—झारा पोतना—पोता घेरना—घेरा

आई—इस प्रत्यय से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं जिनसे (१) क्रिया के व्यापार और (२) क्रिया के दामों का बेाध होता है।

(१) लड़ना—लड़ाई समाना—समाई चढना—चढ़ाई
दिखना—दिखाई सुनना—सुनाई पढ़ना—पढ़ाई
खुदना—खुदाई जुतना—जुताई
(२) लिखाना—लिखाई पिसाना—पिसाई
चराना—चराई कमाना—कमाई
खिलाना—खिलाई धुलाना—धुलाई

बनवाना—बनवाई।