पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२२)


भी इनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। इनकी भाषा में संस्कृत-शब्दों की बहु- तायत है । इनकी योग्यता की तुलना सूरदास और तुलसीदास से की जाती है। इनका मरण काल अनुमान से सन् १६१२ ईसवी है। बिहारीलाल ने १६५० ईसवी के लगभग "सतसई” समाप्त की। इस ग्रंथ-रत्न मे काव्य के प्रायः सब गुण विद्यमान हैं। इसकी भाषा शुद्ध ब्रज-भाषा है। “बिहारी-सतसई" पर कई कवियों ने टीकाएँ लिखी हैं। भूषण ने १६७३ ईसवी में “शिवराज-भूषण” बनाया और फिर अन्य ग्रंथ लिखे। इनके ग्रंथों में देश-भक्ति और धर्मा- भिमान खूब दिखाई देता है। इनकी कुछ कविता खड़ी बोली में भी है और अधिकांश कविता वीर-रस से भरी हुई है। चिंतामणि और मतिराम इनके भाई थे, जो भाषा-साहित्य के आचार्य भाने जाते हैं। नाभादास जाति के डोम थे और तुलसीदास के सम- कालीन थे । इन्होंने व्रजभाषा में "भक्त-माल" नामक पुस्तक लिखी जिसमें अनेक वैष्णव भक्तों का संक्षिप्त वर्णन है।

इस काल के उत्तरार्द्ध ( १७००-१८०० ईसवी ) में राज्य-क्रांति के कारण कविता की विशेष उन्नति नहीं हुई। इस काल के

प्रसिद्ध कवि प्रियादास, कृष्णकवि, भिखारीदास, ब्रजवासीदास, और सूरति मिश्र हैं । प्रियादास ने सन् १७१२ ईसवी में “भक्त- माल" पर एक (पद्य) टीका लिखी। कृष्णकवि ने “विहारी- सतसई" पर सन् १७२० के लगभग एक टीका रची । भिखारीदास सन् १७२३ के लगभग हुए और साहित्य के अच्छे लेखक समझे जाते हैं। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ "छंदोऽर्णव" और “काव्य-निर्णय” हैं। व्रजवासीदास ने सन् १७७० ई० में “ब्रज-विलास" लिखा, जो विशेष लोक-प्रिय है। सूरति मिश्र ने इसी समय में ब्रजभापा के गद्य में "बैताल-पचीसी" नामक एक ग्रंथ लिखा । यही कवि गद्य के प्रथम लेखक हैं।