औवल (भाववाचक)—
बूझना—बुझौवल | बनना—बनौवल |
मीचना—मिचौवल
क (भाववाचक, स्थानवाचक)—
बैठना—बैठक | फाड़ना—फाटक |
(कर्त्तृवाचक)--
मारना—मारक | घालना—घालक |
घोलना—घोलक | जाँचना—जाँचक |
[सू॰—किसी-किसी अनुकरणवाचक सूळ अव्यय के आगे इस प्रत्यय के योग से धातु भी बनते हैं, जैसे, खड—खडकना, धड़—धड़कना, तड़—तड़कना, धम—धमकना, खट—खटकना।]
कर, के, करके—ये प्रत्यय सब धातुओं मे लगते हैं और इनके योग से अव्यय बनते हैं। इन प्रत्ययों में 'कर' अधिक शिष्ट समझा जाता है और गद्य में बहुधा इसी का प्रयोग होता है। इन प्रत्ययों से बने हुए अव्यय पूर्वकालिक कृदंत कहलाते हैं और उनका उपयोग बहुधा क्रिया-विशेषण के समान तीनों कालों में होता है। पुर्वकालिक कृदंत अव्यय का उपयोग बहुधा संयुक्त क्रियाओं की रचना में होता है, जिसका वर्णन संयुक्त क्रियाओं के अध्याय में आ चुका है। उदा॰—देकर, जाकर, उठके, दाड़ करके, इत्यादि।
[सू॰—किसी-किसी की सम्मति में "कर" और "करके" प्रत्यय नहीं है, कितु स्वतंत्र शब्द हैं; और कदाचित् इसी विचार से वे लेग "चलकर" शब्द को "चल कर" (अलग-अलग) लिखते है। यदि यह भी मान लिया जावे कि "कर" स्वतंत्र शब्द है—पर कई एक स्वतंत्र शब्द भी अपनी स्वतंत्रता त्यागकर प्रत्यय हो गये हैं तो भी उसे अलग-अलग लिखने के लिये कोई कारण नहीं है, क्योंकि समास में भी तो दो वा अधिक शब्द एकत्र लिखे जाते है।]
का (विविध अर्थ में)—छीलना—छिलका,