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की (विविध अर्थ में)—फिरना—फिरकी, फूटना—फुटकी, डूबना—डुबकी।

गी (भाववाचक)—देना—देनगी । कर्त्ता (भाववाचक)—

बचना—बचत खपना—खपत
पड़ना—पड़त रँगना—रँगत

ता—इस प्रत्यय के द्वारा सब धातुओं से वर्त्तमानकालिक कृदंत बनते हैं जिनका प्रयोग विशेषण के समान होता है और जिनमें विशेष्य के लिंग-वचन के अनुसार विकार होता है। कालरचना में इस कृदंत का बहुत उपयोग होता है। उदा॰—जाता, आता, देखता, इत्यादि।

ती (भाववाचक)—

बढ़ना—बढ़ती घटना—घटती चढ़ना—चढ़ती
भरना—भरती चुकना—चुकती गिनना—गिनती
झड़ना—झड़ती पाना—पावती फबना—फबती

ते—इस प्रत्यय के द्वारा सच धातुओ से अपूर्ण क्रिया-द्योतक कृदंत बनाये जाते हैं जिनको प्रयोग क्रिया-विशेषण के समान होता है। इमसे बहुधा मुख्य क्रिया के समय होनेवाली घटना का बोध होता है। कभी कभी इससे लगातार का अर्थ भी निकलता है; जैसे, मुझे आपका खोजते कई घंटे हो गये। उनको यहाॅ रहते तीन बरस हो चुके।

(भाववाचक)—

चलना—चलन कहना—कहन
मुस्क्याना—मुस्क्यान लेना—देना—लेनदेन
खाना-पीना—खानपान व्याना—व्याना
सीना—सिवन, सीवन