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(ई)—(अधिकरणवाचक)—झिरना, रमना, पालना।

नी—इस प्रत्यय के योग से स्त्रीलिंग कृदत संज्ञाएँ बनती हैं। (अ)—(भाववाचक)—

करना—करनी भरना—भरनी
कटना—कटनी बोना—बोनी

(आ)—(कर्मवाचक)—चटनी, सुँघनी, कहानी, इत्यादि ।

(इ)—(करणवाचक)—

धौंकनी, ओढ़नी, कतरनी, छननी, कुरेदनी, लेखनी, ढकनी, सुमरनी, इत्यादि।

(ई)—(विशेषण)—

कहनी (कहने के योग्य), सुननी (सुनने के योग्य)

वाँ—(विशेषण)—

ढालना—ढलवाँ काटना—कटवाँ
पीटना—पिटवाँ चुनना—चुनवाँ

वाला—यह प्रत्यय सब क्रियार्थक संज्ञाओं में लगता है और इसके योग से कर्तृवाचक विशेषण और सज्ञाएँ बनती हैं। इस प्रत्यय के पूर्व अंत्य आ के स्थान में ए हो जाता है; जैसे, जानेवाला, रोकनेवाला, खानेवाला, देनेवाला।

वैया—यह प्रत्यय ऐया का पर्याय है और "वाला" का समानार्थी है। इसका प्रयाग एकाक्षरी धातुओं के साथ अधिक होता है, जैसे, खवैया, गवैया, छवैया, दिवैया, रखवैया।

सार—मिलनसार। (यह प्रत्यय उर्दू है)

हार—यह वाला के स्थान में कुछ धातुओं से होता है, जैसे, मरनहार, होनदार, जानहार, इत्यादि।

हारा—यह प्रत्यय "वाला" का पर्यायी है; पर इसका प्रचार गद्य में कम होता है।