आइँद (भाववाचक)—जैसे, कपड़ा—कपड़ाइँद (जले कपड़े की बास), सड़ाइँद, घिनाइँद, मघाइँद।
आई—इस प्रत्यय के योग से विशेषणों और संज्ञाओं से भाव- वाचक संज्ञाएँ बनती हैं; जैसे,
भला—भलाई | बुरा—बुराई | ढीठ—ढिठाई |
चतुर—चतुराई | चिकना—चिकनाई | पंडित—पंडिताई |
ठाकुर—ठकुराई | बनिया—बनियाई |
[सू॰—(१) इस प्रत्यय से कुछ जातिवाचक संज्ञाएँ भी बनती हैं। मिठाई, खटाई, चिकनाई, ठंडाई, आदि शब्दों से उन वस्तु का भी बोध होता है जिनमें यह धर्म पाया जाता है। मिठाई = पेढा,बर्फी, आदि। ठंड़ाई-भाँग।
(२) यह प्रत्यय कभी-कभी सस्कृत की 'ता' [प्रत्ययति भाववाचक संज्ञाओं में भूल से जेड़ दिया जाता है, जैसे, मूर्खताई, कोमलताई, शूरताई, जड़ताई।
(३) 'आई' प्रत्ययांत सब तद्धित शब्द स्त्रीलिंग हैं।]
आनंद—विनोद में नाम के साथ जोड़ा जाता है—गड़बड़ानंद, मेडकानंद, गोलमालानंद।
आऊ (गुणवाचक)—
आगे—अगाऊ | घर—घराऊ |
बाट—बटाऊ | पडिंत—पंडिताऊ |
आका—अनुकरवाचक शब्दों से इस प्रत्यय के द्वारा भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं, जैसे,
सन—सनाका | धम—धमाका | सड़—सड़ाका |
भड़—भड़ाका | धड़—धड़ाका |
आटा-यह उपर्युक्त प्रत्यय का समानार्थी है और कुछ शब्दों
में लगाया जाता है; जैसे, अर्राटा, भर्राटा, सर्राटा, घर्राटा।
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