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डब्बा—डबिया | गठरी—गठरिया |
आम—अँबिया | बेटी—बिटिया |
(इ)—(वस्त्रार्थी)—जाँघिया, अँगिया।
(ई) ईकारांत पुल्लिंग और स्त्रीलिग संज्ञाओं में अनादर अथवा दुलार के लिये यह प्रत्यय लगाते हैं; जैसे,
हरी—हरिया | तेली—तिलिया |
धोबी—धुबिया | राधा—रधिया |
दुर्गा—दुर्गिया | माई—मैया |
भाई—भैया | सिपाही—सिपहिया |
(उ) प्राचीन कविता के कई शब्दों में यह प्रत्यय स्वार्थ में लगा हुआ मिलता है; जैसे,
आँख—अँखिया | भाँग—भँगिया | आग—अगिया |
पाँव—पैयाँ | जी–जिया | पी—पिया |
ई—(अ) यह प्रत्यय कई एक संज्ञाओं में लगाने से विशेषण बनते हैं; जैसे, भार–भारी, ऊन-ऊनी, देश-देशी। इसी प्रकार जंगली, विदेशी, बैंगनी, गुलाबी, बैसाखी, जहाजी, सरकारी आदि शब्द बनते हैं। देश के नाम से जाति और भाषा के नाम भी इस प्रत्यय के योग से बनते हैं; जैसे, मारवाड़ी, बंगाली, गुजराती, विलायती, नैपाली, अरबी, पंजाबी।
(आ) कई एक अकारांत वा आकारांत संज्ञाओ में यह प्रत्यय लगाने से ऊनवाचक संज्ञाएँ बनती हैं; जैसे,
पहाड़—पहाड़ी | घाट—घाटी | ढोलकी | डोरी |
टोकरी | रस्सी | उपली |
(इ) कोई-कोई व्यापारवाचक संज्ञाएँ इसी प्रत्यय के योग से बनी है; जैसे, तेली (तेल निकालनेवाला), माली, धोबी, तमोली।