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(६) फअआल—इसे नमूने पर व्यापार की कर्तृवाचक सज्ञाएँ बनती हैं; जैसे, जल्लाद, (जलद=कोडा मारना), सर्राफ (सरफ़=बदलना, हिं॰—सराफ), बज्ज़ाज (हिं॰—बजाज), वक्काल।

४४२—त्रिवर्ण धातुओं से क्रियार्थक संज्ञाओं के और भी रूप बनते हैं जिनमें दो वा अधिक अधिकाक्षर आते हैं। मूल क्रियार्थक संज्ञा के अनुरूप इन क्रियार्थक संज्ञा से भी कर्तृवाचक और कर्मवाचक विशेषण बनते हैं। दोनों के मुख्य साँचे नीचे दिये जाते हैं।

(क) क्रियार्थक संज्ञाओं के अन्य रूप।

(१) तफ्ईल—जैसे, तअलीम=शिक्षा (अलम=जानना से, हि॰—तालीम), तहसील=प्राप्ति (हसल=पानी से)।

(२) मुफाअलत—मुकावला=सामना (कबल=सामने होना से), सुआमला=विषय, उद्योग (अमल=अधिकार चलाना से)।

(३) इफ्आल—इन्कार=नाहीं (नकर=ने जानना से), इन्साफ=न्याय (नसफ=न्याय करनी से)।

(४) तफउउल—जैसे, तअल्लुक=सबध (अलक=आसरा करना से), तखल्लुस=उपनाम (खलस=रक्षित होना से), तकल्लुफ (कलफ= आदर करना से)।

(५) इफ्तिमाल—जैसे, इम्तिहान=परीक्षा (महन=परीक्षा करना से), ऐतराज=आपत्ति (अरज=आगे रखना से), ऐतवार=विश्वास (अवर=विश्वास करना से)।

(६) इस्तिफ्आल—इस्तिअमाल=उपयोग (अमल=काम में लाना से), इसतिमरार=स्थिरता (मर्र=होता रहना से)।

(ख) क्रियार्थक विशेषणों के अन्य रूप।

कर्तृवाचक और कर्मवाचक विशेष के वजन नीचे लिखे जाते हैं। इनके रूप में यह अंतर है कि पहले के अत्याक्षर में इ और दूसरे के अंत्याक्षर में अ रहता है—