पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४४१)


इयत—(भाववाचक), जैसे, इंसान (मनुष्य)—इसानियत (मनुष्यत्व), कैफ (कैसे?)—कैफ़ियत, मा (क्या?)—माहियत (मूल)।

—(गुणवाचक); जैसे, इल्म-इल्मी, अरब—अरबी, ईसा— ईसवी, इसान—इसानी।

ची—इस तुर्की प्रत्यय से व्यापारवाचक संज्ञाएँ बनती हैं; जैसे, मशअलची (हिं॰—मशालची), तवलची, खजानची, बावर (विश्वास)—बावरची (रसोइया)।

४४४—अरबी में समास के लिये दो सज्ञाओं के बीच में उल् (का) संबंध-सूचक रख देते हैं और भेद्य के भेदक के पहले लाते हैं, जैसे, जलाल (प्रभुत्व)+उल्+दीन (धर्म)=जलालुद्दोन (धर्म-प्रभुत्व)। इस उदाहरण मे उल् का अंत्य ल् अरबी भाषा की सधि के अनुसार द होकर "दीन" के आद्य "द" में मिल गया है। इसी प्रकार दार (घर)+उल्+सल्तनत (राज्य)=दारुस्सल्तनत (राजधानी), हबीब (मित्र)+उल्+अल्लाह (ईश्वर)=हबीबुल्लाह (ईश्वर-मित्र), निजामुल्-मुल्क (राज्य-व्यवस्थापक)।

(क)—वलद (अप॰ वल्द=पुत्र) दो हिंदी व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के बीच में पिता-पुत्र का सबंध बताने के लिये आता है, जैसे, मोहन वल्द सोहन (सोहन का पुत्र मोहन)। यह कानूनी हिंदी का एक उदाहरण है।