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में प्रयुक्त होने लगे हैं। निरे हिंदी सामासिक शब्द बहुत कम मिलते हैं और वे बहुधा दो ही शब्दों से बने रहते हैं। संस्कृत-समास बहुधा लंबे होते हैं और कोई-कोई लेखक अथवा कवि आग्रह-पूर्वक लंबे-लंबे समासों का उपयोग करने में अपनी कुशलता समझते हैं। "जनमनमंजु-मुकुर-मल-हरनी" (राम॰) हिदी में प्रचलित एक सबसे बड़े समास का उदाहरण है, पर इस प्रकार के समासों के लिये हिंदी की स्वाभाविक प्रवृत्ति नहीं है। हमारी भाषा में तो दो अथवा अधिक से अधिक तीन शब्दों ही के समास उचित और मधुर जान पड़ते हैं।]

४४९—समासों के मुख्य चार भेद हैं। जिन दो शब्दों में समास होता है उनकी प्रधानता अथवा अप्रधानता के विभाग-तत्त्व पर ये भेद किए गए हैं।

जिस समास में पहला शब्द प्रायः प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जिस समास में दूसरा शब्द प्रधान रहता है उसे तत्पुरुष कहते हैं। जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं वह द्वंद्व कहलाता है। और जिसमें कोई भी शब्द प्रधान नही होता उसे बहुब्रीहि कहते हैं।

इन चार मुख्य भेदों के कई उपभेद भी हैं जो न्यूनाधिक महत्त्व के हैं। इन सबका विवेचन आगे यथास्थान किया जायगा।

अव्ययीभाव।

४५०—जिस समास में पहला शब्द प्रधान होता है और जो समूचा शब्द क्रिया-विशेषण अव्यय होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं; जैसे, यथाविधि, प्रतिदिन, भरसक।

[सू॰—संस्कृत में अव्ययीभाव-समास का पहला शब्द अव्यय होता है और दूसरा शब्द संज्ञा अथवा विशेषण रहता है। पर हिंदी में इस समास के उदाहरणों में पहले अव्यय के बदले बहुधा संज्ञा ही पाई जाती है। यह बात आगे अं॰ ४५२ में स्पष्ट होगी।]