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४५१—(अ) जिन समासों में यथा (अनुसार), आ (तक), प्रति (प्रत्येक), यावत् (तक), वि (विना) पहले आते हैं, ऐसे संस्कृत अव्ययीभाव-समास हिंदी में बहुधा आते हैं; जैसे,

यथाविधि आजन्म
यथास्थान आमरण
यथाक्रम यावज्जीवन
यथासंभव प्रतिदिन
यथाशक्ति प्रतिमास
यथासाध्य व्यर्थ

(आ) अक्षि (नेत्र) शब्द अव्ययीभाव-समास के अंत में अक्ष हो जाता है, जैसे, प्रत्यक्ष (आँख के आगे), समक्ष (सामने), परोक्ष (आँख के पीछे, पीठ-पीछे)।

४५२—हिंदी में संस्कृत पद्धति के निरे हिंदी-अव्ययीभाव समास बहुत ही कम पाये जाते हैं। इस प्रकार के जो शब्द हिंदी मे प्रचलित हैं वे तीन प्रकार के हैं।

(अ) हिंदी—जैसे, निडर, निधड़क, भरपेट, भरदौड़, अनजाने।

(आ) उर्दू अर्थात् फारसी अथवा अरबी, जैसे, हरराज, हरसाल, बेशक, बेफायदा, बजिस, बखूबी, नाहक।

(इ) मिश्रित अर्थात् भिन्न-भिन्न भाषाओं के शब्दों के मेल से बने हुए, जैसे, हरघड़ी, हरदिन, बेकाम, बेखटके।

[सू॰—ऊपर के उदाहरणों में जो "हर" शब्द आया है, वह यथार्थ में विशेषण है, इसलिये उसके योग से बने हुए शब्दों को कर्मधार्य मानने का भ्रम हो सकता है। पर इन समस्त शब्दों का उपयोग क्रिया-विशेषण के समान होता है, इसलिये इन्हें अव्ययीभाव ही मानना चाहिए।]