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४५३—प्रतिदिन, प्रतिवर्ष इत्यादि संस्कृत अव्ययीभाव-समासों के विग्रह (उदा॰—दिने दिने, प्रतिदिनम्) पर ध्यान करने से जाना जाता है कि यद्‌‍यपि प्रति शब्द का अर्थ प्रत्येक है तो भी वह अगली संज्ञा की द्विरुक्ति मिटाने के लिये लाया जाता है। पर हिंदी में प्रति का उपयोग न कर अगली संज्ञा की ही द्विरुक्ति करके अव्ययीभाव-समास बनाते हैं। इस समास में हिंदी का प्रथम शब्द बहुधा विकृत रूप में आता है। उदा॰—घरघर, हाथोंहाथ, पलपल, दिनोंदिन, रातोंरात, कोठेकोठे, इत्यादि।

(अ) पुश्तानपुश्त, साल-दरसाल आदि शब्दों में दर (फारसी) और आन (स॰—अनु) अव्ययों का प्रयोग हुआ है। ये शब्द भी अव्ययीभाव समास के उदाहरण हैं।
(आ) कभी-कभी द्विरुक्त शब्दों के बीच में ही वा ही अथवा आ आता है; जैसे, मनहीं-मन, घरही-घर, आपही-आप, मुँहा-मुँह, सरासर (पूर्णतया), एकाएक।

[सू॰—ऊपर लिखे शब्दों का उपयोग संज्ञाओं और विशेषणों के समान भी होता है; जैसे कौड़ी-कौड़ी जोड़कर, उसकी नस-नस में ऐब भरा है, "तिल-तिल भारत भूमि जीत यवनों के कर से" (सर॰)। ये समास कर्मधार्य है।

४५४—संज्ञाओं के समान अव्ययों की द्विरुक्ति से भी अव्ययी-भाव समास होता है; जैसे, बीचोंबीच, धड़ाधड़, पहले-पहल, बराबर, धीरे-धीरे।

तत्पुरुष।

४५५—जिस समास में दूसरा शब्द प्रधान होता है उसे तत्पुरुष कहते हैं। इस समास में पहला शब्द बहुधा संज्ञा अथवा विशेषण होता है और इसके विग्रह में इस शब्द के साथ कर्त्ता और संबोधन कारकों को छोड़ शेष कारकों की विभक्तियाँ लगती हैं।