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४५६—तत्पुरुष-समास के मुख्य दो भेद हैं, एक व्यधिकरण तत्पुरुष और दूसरा समानाधिकरण तत्पुरुष। जिस तत्पुरुष-समास के विग्रह में उसके अवयवों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ लगाई जाती हैं उसे व्यधिकरण तत्पुरुष कहते हैं। व्याकरण की पुस्तक में तत्पुरुष के नाम से जिस समास का वर्णन रहता है वह यही व्यधिकरण तत्पुरुष है। समानाधिकरण तत्पुरुष के विग्रह में उसके दोनों शब्दों में एकही विभक्ति लगती है। समानाधिकरण तत्पुरुष का प्रचलित नाम कर्मधारय है और यह कोई अलग समास नहीं है, किंतु तत्पुरुष का केवल एक उपभेद है।

४५७—व्यधिकरण तत्पुरुष के प्रथम शब्द में जिस विभक्ति का लोप होता है उसी के कारक के अनुसार इस समास का नाम*[१] होता है। यह समास नीचे लिखे विभागों में विभक्त हो सकता है—

कर्म-तत्पुरुष (संस्कृत-उदाहरण)—

स्वर्गप्राप्त, जलपिपासु, आशातीत (आशा को लाँधकर गया हुआ), देश-गत।

करण तत्पुरुष—

(संस्कृत) ईश्वरदत्त, तुलसी-कृत, भक्तिवश, मदांध, कष्टसाध्य, गुणहीन, शराहत, अकालपीड़ित, इत्यादि।

(हिंदी) मनमाना, गुड़भरा, दईमारा, कपड़छन, मुँहमाँगा, दुगुना, मदमाता, इत्यादि।

(उर्दू) दस्तकारी, प्यादमात, हैदराबाद।

संप्रदान-तत्पुरुष—(संस्कृत) कृष्णार्पण, देशभक्ति, बलि-पशु, रण-निमंत्रण, विद्यागृह, इत्यादि।


  1. * संस्कृत में विभक्ति ही का नाम दिया जाता है, जैसे, द्वितीया-तत्पुरुष, षष्ठी-तत्पुरुप, इत्यादि।