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आजकल कुछ लोग न जानें क्यों "खरी बोली" कहने लगे हैं। आजकल "खड़ी-बोली" शब्द केवल कविता की भाषा के लिए आता है, यद्यपि गद्य की भाषा भी “खड़ी-बोली" है। लल्लूजी लाल ने एक जगह अपनी भाषा का नाम " रेख्ते की बोली" भी लिखा है।" रेख्ता " शब्द कबीर के एक ग्रंथ मे भी आया है, पर वहाँ उसका अर्थ "भाषा" नहीं है, किंतु एक प्रकार का " छंद” है। जान पड़ता है कि फारसी-अरबी शब्द मिलाकर भाषा में जो फारसी छंद रचे गये उनका नाम रेख्ता ( अर्थात् मिला हुआ ) रक्खा गया और फिर पीछे से यह शब्द मुसलमानों की कविता की बोली के लिये प्रयुक्त होने लगा। यह भी एक अनुमान है कि मुसलमानों में रेख्ता का प्रचार बढ़ने के कारण हिंदुओं की भाषा का नाम " हिंदुई " या ( हिंदवी ) रक्खा गया। इस “हिंदवी” में जिसे आजकल "खड़ी-बोली” कहते हैं, कबीर, भूषण, नागरीदास आदि कुछ कवियों ने कविता की है; पर अधिकांश हिदू कवियों ने श्रीकृष्ण की उपासना और भाषा की मधुरता के कारण ब्रज-भाषा का ही उपयोग किया है।

आरंभ में हिंदुई और रेख्ता में थोड़ा ही अंतर था । अमीर खुसरो जिसकी मृत्यु सन् १३२५ ई० में हुई, मुसलमानों में सर्व- प्रथम और प्रधान कवि माना जाता है। उसकी भाषा[१] से जान पड़ता है कि उस समय तक हिंदी में मुसलमानी शब्दों और फारसी ढंग की रचना की भरमार न हुई थी और मुसलमान लोग शुद्ध हिदी लिखते-पढ़ते थे। जब देहली के बाजार में तुर्क, अफगान और


  1. तरवर से एक तिरिया उतरी, उसने खूब रिझाया।
    बाप को उसके नाम जो पूछा, आधा नाम बताया॥
    आधा नाम पिता पर वाका, अपना नाम निबोरी।
    अमीर खुसरो यों कहैं, बूझ पहेली मोरी॥