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आमने-सामने, आस-पास, अड़ोस-पड़ोस, बात-चीत, देख-भाल, दौड़-धूप, भीड़-भाड़, अदला-बदला, चाल-ढाल, काट-कूट।

[ सु॰—(१) अनुप्रास के लिए जो शब्द लाया जाता है उसके आदि में दूसरे (मुख्य) शब्द का स्वर रखकर उस ( मुख्य) शब्द के शेष भाग के पुनरुक्त कर देते हैं, जैसे, डेरे-एरे, घोड़ा-ओड़ा, कपड़े-अपड़े। कभी-कभी मुख्य शब्द के आद्य वर्ण के स्थान में स का प्रयोग करते हैं, जैसे, उलटा-सुलटा, गँवार-सँवार, मिठाई-सिठाई। उर्दू में बहुधा 'व' लाते है; जैसे, पान-वान, खत-वत, कागज-वागज। बुँदेलखंड़ी में बहुधा म का प्रयोग किया जाता है, जैसे, पान-मान, चिट्ठी-मिट्टी, पागल-मागल, गाँव-गाँव।]

(२) कभी-कभी पूरा शब्द पुनरुक्क होता है और कभी प्रथम शब्द के अंत में आ और दूसरे शब्द के अंत में ई कर देते हैं, जैसे, काम-काम, भागा-भाग, देखादेखी, तढातड़ी, देखा-भाली, टोआटाई।]

(३) वैकल्पिक-द्वंद्व-जब दो पद "वा", "अथवा", आदि विकल्पसूचक समुच्चयबोधक के द्वारा मिले हों और उस समुच्चयबोधक का लोप हो जाये, तब उन पदों के समास को वैकल्पिक द्वंद्व कहते हैं। इस समास मे बहुधा परस्पर-विरोधी शब्दों का मेल हेाता है, जैसे, जात-कुजात, पाप-पुण्य, धर्माधर्म, ऊँच-नीचा, थोड़ा-बहुत, भला-बुरा।

[सू॰—दो-तीन, नौ-दस, बीस-पच्चीस, आदि अनिश्चित गणनावाचक सामासिक विशेषण कभी-कभी संज्ञा के समान प्रयुक्त होते हैं। उस समय उन्हें वैकल्पिक द्वंद्व कहना उचित है; जैसे, मैं दो-चार को कुछ नहीं समझता।]

बहुब्रीहि

४६६—जिस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता और जो अपने पदों से भिन्न किसी संज्ञा का विशेषण होता है उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं, जैसे, चंद्रमौलि (चंद्र है सिर पर जिसके