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अर्थात् शिव), अनंत (नहीं है अंत जिसका अर्थात् ईश्वर), कृतकार्य (कृत अर्थात् किया गया है काम जिसके द्वारा वह मनुष्य)।

(सू॰— पहले कहे हुए प्रायः सभी प्रकार के समास किसी दूसरी संज्ञा के विशेषण के अर्थ में बहुब्रीहि हो जाते हैं, जैसे 'मंदमति' (कर्मधारय) विशेषण के अर्थ में बहुब्रीहि है। पहले अर्थ में 'मंदमति' केवल 'धीमी बुद्धि' वाचक है, पर, पिछले अर्थ में इस शब्द का विग्रह यों होगा। मंद है मति जिसकी वह मनुष्य। यदि 'पीतांबर' शब्द का अर्थ केवल 'पीला कपड़ा' है तो वह 'कर्मधारय' है; परंतु उससे 'पीला कपड़ा है जिसका' अर्थात् 'विष्णु' का अर्थ लिया जाय तो वह बहुब्रीहि है।

४६७—इस समास के विग्रह में संबंधवाचक सर्वनाम के साथ कर्ता और संबोधन कारकों को छोड़कर शेष जिन कारकों की विभक्तियाँ लगती हैं, उन्हीं के नामों के अनुसार इस समास का नाम होता है; जैसे—

कर्मबहुब्रीहि इस जाति के संस्कृत समासों का प्रचार हिंदी में नहीं है और न हिंदी ही में कोई ऐसा समास है। इनके संस्कृत उदाहरण ये हैं—प्राप्तोदक (प्राप्त हुआ है जल जिसको वह प्राप्तोदक ग्राम), आरूढ़वानर (आरूढ़ है वानर जिस पर वह आरूढ़वानरवृक्ष)।

करणबहुब्रीहि कृतकार्य (किया गया है कार्य जिसके द्वारा), दत्तचित्त (दिया है चित्त जिसने), धृतचाप, प्राप्तकाम।

संप्रदानबहुब्रीहि यह समास भी हिंदी में बहुधा नहीं आता। इसके संस्कृत उदाहरण ये हैं—दत्तधन (दिया गया है धन जिसको), उपहृतपशु (भेंट में दिया गया है पशु जिसको)।

अपादानबहुब्रीहि निर्जन (निकल गया है जनसमूह जिसमें से), निर्विकार, विमल, लुप्तपद।

संबंधबहुब्रीहि दशानन (दस हैं मुँह जिसके), सहस्रबाहु (सहस्र हैं बाहु जिसके), पीतांबर (पीत है अंबर=कपड़ा जिसका), चतुर्भुज, नीलकंठ, चक्रपाणि, तपोधन, चंद्रमौलि, पतिव्रता।