यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४६२)
संस्कृत-समासों के कुछ विशेष नियम।
४७०—किसी-किसी बहुब्रीहि समास का उपयोग अव्ययीभाव समास के समान होता है; जैसे, प्रेमपूर्वक, विनयपूर्वक, सादर, सविनय, सप्रेम।
४७१—तत्पुरुष समास में नीचे लिखे विशेष नियम पाये जाते हैं—
(अ) अहन् शब्द किसी-किसी समास के अंत में अह्न हो जाता है; जैसे, पूर्वाह्न, अपराह्न, मध्याह्न।
(आ) राजन् शब्द के अंत्य व्यंजन का लोप हो जाता है; जैसे, राजपुरुष, महाराज, राजकुमार, जनकराज।
(इ) इस समास में जब पहला पद सर्वनाम होता है तब भिन्न-भिन्न सर्वनामों के विकृत रूपों का प्रयोग होता है—
हिंदी | संस्कृत | विकृत रूप | उदाहरण | |
मैं | अहम् | मत् | मत्पुत्र | |
हम | वयम् | अस्मत् | अस्मत्पिता | |
तू | त्वम् | त्वत् | त्वद्गृह | |
तुम | यूयम् भवान् |
युष्मत् भवत् |
युष्मत्कुल भवन्माया | |
वह, वे | तद् | तत् | तत्काल, तद्रूप | |
यह, ये | एतद् | एतत् | एतद्देशीय | |
जो | यद् | यत् | यत्कृपा |
(ई) कभी-कभी तत्पुरुष-समास का प्रधान पद पहले ही आता है; जैसे, पूर्वकाय (काया अर्थात् शरीर का पूर्व अर्थात् अगला भाग), मध्याह्न (अह्नः अर्थात् दिन का मध्य), राजहंस (हंसों का राजा)।