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संस्कृत-समासों के कुछ विशेष नियम।

४७०—किसी-किसी बहुब्रीहि समास का उपयोग अव्ययीभाव समास के समान होता है; जैसे, प्रेमपूर्वक, विनयपूर्वक, सादर, सविनय, सप्रेम।

४७१—तत्पुरुष समास में नीचे लिखे विशेष नियम पाये जाते हैं—

(अ) अहन् शब्द किसी-किसी समास के अंत में अह्न हो जाता है; जैसे, पूर्वाह्न, अपराह्न, मध्याह्न।

(आ) राजन् शब्द के अंत्य व्यंजन का लोप हो जाता है; जैसे, राजपुरुष, महाराज, राजकुमार, जनकराज।

(इ) इस समास में जब पहला पद सर्वनाम होता है तब भिन्न-भिन्न सर्वनामों के विकृत रूपों का प्रयोग होता है—

हिंदी संस्कृत विकृत रूप उदाहरण
मैं अहम् मत् मत्पुत्र
हम वयम् अस्मत् अस्मत्पिता
तू त्वम् त्वत् त्वद‍्गृह
तुम

यूयम्
भवान्
युष्मत्
भवत्
युष्मत्कुल
भवन्माया
वह, वे तद् तत् तत्काल, तद्रूप
यह, ये एतद् एतत् एतद्देशीय
जो यद् यत् यत्कृपा

(ई) कभी-कभी तत्पुरुष-समास का प्रधान पद पहले ही आता है; जैसे, पूर्वकाय (काया अर्थात् शरीर का पूर्व अर्थात् अगला भाग), मध्याह्न (अह्नः अर्थात् दिन का मध्य), राजहंस (हंसों का राजा)।