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(उ) जब अन्नंत और इन्नंत शब्द तत्पुरुष समास के प्रथम स्थान में आते हैं तब उनके अंत्य न् का लोप होता है, जैसे, आत्म-बल, ब्रह्मज्ञान, हस्तिदंत, योगिराज, स्वामिभक्त।

(ऊ) विद्वान्, भगवान्, श्रीमान्, इत्यादि शब्दों के मूल रूप विद्वस्, भगवत्, श्रीमत् समास में आते हैं, जैसे, विद्वज्जन, भगवद्भक्त,श्रीमद्भागवत।

(ऋ) नियम-विरुद्ध शब्द—वाचस्पति, बलाहक (वारीणं वाहक, जल का वाहक—मेघ), पिशाच (पिशित अर्थात् मांस भक्षण करनेवाले), बृहस्पति, वनस्पति, प्रायश्चित्त, इत्यादि।

४७२—कर्मधारय-समास के संबंध में नीचे लिखे नियम पाये जाते हैं—

(अ) महत् शब्द का रूप महा होता है, जैसे, महाराज, महादशा, महादेव, महाकाव्य, महालक्ष्मी, महासभा।

अपवाद—महद तर, महदुपकार, महत्कार्य।

(आ) अन्नंत शब्द के द्वितीय स्थान में आने पर अंत्य नकार का लोप हो जाता है, जैसे, महाराज, महोक्ष (बडा बैल)।

(इ) रात्रि शब्द समास के अंत मे रात्र हो जाता है; जैसे, पुर्वरात्र, अपररात्र, मध्यरात्र, नवरात्र।

(ई) कु के बदले किसी-किसी शब्द के आरंभ में कत्, कव और का हो जाता है, जैसे, कदन्न, कदुष्प, कवोष्ण, कापुरुष।

४७३—बहुब्रीहि समास के विशेष नियम ये हैं—

(अ) सह और समान के स्थान में प्रायः स आता है, जैसे, सादर, सविस्मय, सवर्ण, सजात, सरूप।

(आ) अक्षि (आँख), सखि (मित्र), नाभि इत्यादि कुछ इकारांत शब्द समास के अंत में अकारांत हो जाते हैं, जैसे, पुंडरीकाक्ष, मरुत्सख, पद्मनाभ (पद्म है नाभि में जिसके अर्थात् विष्णु)।