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पाँच पच पचमेल, पचमहला, पचलोना, पचलड़ी।
छः छप्पय, छटाँक, छदाम, छकड़ी।
सात सत सतनजा, सतमासा, सतखंडा, सतसैया।
आठ अठ अठखेली, अठन्नी, अठोतर।

४८०—समास में बहुधा पुँल्लिग शब्द पहले और स्त्रीलिंग शब्द पीछे आता है; जैसे, भाई-बहिन, दूध-रोटी, घी-शक्कर, बेटा-बेटी, देखा-देखी, कुरता-टोपी, लोटा-थाली।

अप॰—माँ-बाप, घंटी-घंटा, सास-सुसुर।

समासों के सामान्य नियम

४८१—हिंदी (और उर्दू) समास जो पहले से बने हैं वे ही भाषा में प्रचलित हैं। इनके सिवा शिष्ट लेखक किसी विशेष कारण से नये शब्द बना सकते हैं।

४८२—एक समास में आनेवाले शब्द एक ही भाषा के होने चाहिए। यह एक साधारण नियम है; पर इसके कई अपवाद भी हैं; जैसे, रेलगाड़ी, हरदिन, मनमौजी, इमामबाड़ा, शाहपुर, धन-दौलत।

४८३—कभी-कभी एक ही समास का विग्रह, अर्थ-भेद से कई प्रकार का होता है; जैसे, "त्रिनेत्र" शब्द "तीन आँखों" के अर्थ में कर्मधारय है; परन्तु "महादेव" के अर्थ में बहुब्रीहि है। "सत्यव्रत" शब्द के और भी अधिक विग्रह हो सकते हैं; जैसे,

सत्य और व्रत =द्वंद्व
सत्य ही व्रत =कर्मधारय
सत्य व्रत
सत्य का व्रत =तत्पुरुष
सत्य है व्रत जिसका =बहुब्रीहि