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में सीमा के बाहर चले जाते हैं। उर्दू और हिंदी की छंद-रचना में भी भेद है। मुसलमान लोग फारसी-अरबी के छंदों का उपयोग करते हैं। फिर उनके साहित्य में मुसलमानी इतिहास और दंत- कथाओं के उल्लेख बहुत रहते हैं। शेष बातों में दोनों भाषाएँ प्रायः एक हैं ।

कुछ लोग समझते हैं कि वर्तमान हिदो की उत्पत्ति लल्लूजी लाल ने उर्दू की सहायता से की है। पर यह भूल है। 'प्रेमसागर' की भाषा दो-आब में पहले ही से बोली जाती थी। उन्होंने उसी भाषा का प्रयोग "प्रेमसागर" में किया और आवश्यकतानुसार उसमें संस्कृत के शब्द भी मिलाये। मेरठ के आसपास और उसके कुछ उत्तर में यह भाषा अव भी अपने विशुद्ध रूप में बोली जाती है। वहाँ इसका वही रूप है जिसके अनुसार हिंदी का व्याकरण वना है। यद्यपि इस भाषा का नाम "उर्दू” या “खड़ी बोली” नया है। तो भी उसका यह रूप नया नहीं, किंतु उतना ही पुराना है जितने उसके दूसरे रूप--ब्रजभाषा, वैसवाड़ी, बुंदेलखंडी आदि, हैं । देहली में मुसलमानों के संयोग से हिंदी-भाषा का विकाश जरूर बढ़ा और इसके प्रचार में भी वृद्धि हुई । इस देश में जहाँ जहाँ मुगल बादशाहों के अधिकारी गये वहाँ वहाँ अपने साथ वे इस भाषा को भी लेते गये ।

कोई कोई लोग हिंदी भाषा को “नागरी" कहते हैं। यह नाम अभी हाल का है और देव-नागरी लिपि के आधार पर रक्खा गया जान पड़ता है। इस भाषा के तोन नाम और प्रसिद्ध हैं-(१) ठेठ हिंदी (२) शुद्ध हिंदी और (३) उच्च हिंदी । “ठेठ हिंदी" हमारी भाषा के उस रूप को कहते हैं जिसमें “हिंदवी छुट और किसी बोली क्री पुट् न मिले।" इसमें बहुधा तद्भव[१] शब्द आते हैं। "शुद्ध हिदी"


  1. इसका अर्थ आगामी प्रकरण में लिखा जायगा।