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संज्ञाएँ—टालमटोल, पूछताछ, ढूँढ-ढाँढ़, झाड़-झंखार, गाली- गलौज, बातचीत, चाल-ढाल, भीड़-भाड।

विशेषण—टेढ़ा-मेढ़ा, सीधा-साधा, भोला-भाला, ठीक-ठाक, ढीला-ढाला, उलटा-पुलटा।

क्रिया—देखना-भालना, धोना-धाना, खींचना-खाँचना, होना- हवाना, पूछना-ताछना, इत्यादि।

अव्यय—औने-पौने, आमने-सामने, आस-पास।

[सू॰—द्वंद्व-समास के विवेचन में दी हुई रीति के अनुसार जो पुनरुक्त निरर्थक शब्द बनते है उनका भी ऐसा ही उपयोग होता है; जैसे, पानी-आनी, चिट्ठी-इट्ठी,]

(इ) दो निरर्थक शब्दों के मेल से, जो एक-दूसरे के समानुप्रास रहते हैं, जैसे, अटर-सटर, अट-सट, अगड़-बगड़, टीम-टाम, सटर-पटर, हट्टा-कट्टा, इत्यादि।

[सू॰—अपूर्ण-पुनरुक शब्दों का प्रचार बोलचाल की भाषा में अधिक होता है और शिष्ट तथा शिक्षित लोग भी इनका उपयोग करते हैं। उपन्यास तथा नाटक में, बहुधा बोलचाल की भाषा लिखी जाने के कारण, इन शब्दों के प्रयोग से एक प्रकार की स्वाभाविकता तथा सुंदरता आती है]

अनुकरणवाचक शब्द

५०४—अनुकरवाचक शब्दों का लक्षण पहले (अं॰—४९०में) कह दिया गया है। यहाँ उनके सब प्रकार के उदाहरण दिये जाते हैं—

(अ) संज्ञा—बड़बड, भनभन, खटखट, चींचीं, गिटपिट, गड़गड़, झनझन, पटपट, बकबक इत्यादि।

[सू॰—कई एक आहट-प्रत्ययात शब्द भी अनुकरणवाचक हैं, जैसे, गडगडाहट, भरभराहट, सनसनाहट, गुडगुड़ाहट।]

(आ) विशेषण—कुछ अनुकरणवाचक सज्ञाओं में इया प्रत्यय जोड़ने से अनुकरणवाचक विशेषण बनते हैं; जैसे, गड़बडिया, खटपटिया, भरभरिया।