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तीसरा भाग।

वाक्य-विन्यास।

पहला परिच्छेद।

वाक्य-रचना।

पहला अध्याय।

प्रस्तावना।

५०६—व्याकरण का मुख्य उद्देश्य वाक्यार्थ का स्पष्टीकरण है। और इस स्पष्टीकरण के लिए वाक्य के अवयवों का केवल रूपांतर और प्रयोग ही नहीं, किंतु उनका परस्पर-संबंध भी जानना आवश्यक है। यह पिछला विषय व्याकरण के उस भाग में आता है जिसे वाक्य-विन्यास कहते हैं। वाक्य-विन्यास में, शब्दों को उनके परस्पर सम्बन्ध के अनुसार यथाक्रम रखने की और उनसे वाक्य बनाने की रीति का भी वर्णन किया जाता है।

वाक्य का लक्षण पहले लिखा जा चुका है। (अं॰—८९ अ)।

(क) अर्थ के अनुसार वाक्य आठ प्रकार के होते हैं—

(१) विधानार्थक—जिससे किसी बात का होना पाया जाय; जैसे, इंदौर पहले एक गाँव था। मनुष्य अन्न खाता है।
(२) निषेध-वाचक—जो किसी विषय का अभाव सूचित करता है; जैसे, बिना पानी के कोई जीवधारी नहीं जी सकता। आपका जाना उचित नहीं है।