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मे तद्भव शब्दों के साथ तत्सम 5 शब्दों का भी प्रयोग होता है, पर उसमें विदेशी शब्द नहीं आते । “उच्च हिंदी" शब्द कई अर्थों का बोधक है । कभी कभी प्रांतिक भाषाओं से हिंदी का भेद बताने के लिये इस भाषा को “उच्च हिंदी” कहते हैं। अँगरेज़ लोग इस नाम का प्रयोग बहुधा इसी अर्थ में करते हैं। कभी कभी "उच्च हिंदी" से वह भाषा समझी जाती है जिसमे अनावश्यक सस्कृत-शब्दों को भरमार की जाती है और कभी कभी यह नाम केवल “शुद्ध हिंदी" के पर्याय में आता है।

(६) तत्सम और तद्भव शब्द् ।

उन शब्दों को छोड़कर जो फारसी, अरबी, तुर्की, अँगरेजी आदि विदेशी भाषाओं के हैं ( और जिनकी संख्या बहुत थोड़ी-- केवल दशमांश-- है ) अन्य शव्द हिंदी में मुख्य तीन प्रकार के है

(१) तत्सम

(२) तद्भव

(३) अर्द्ध-तत्सम

तत्सम वे संस्कृत शब्द हैं जो अपने असली स्वरूप में हिंदी भाषा में प्रचलित हैं, जैसे, राजा, पिता, कवि, आज्ञा, अग्नि, वायु, वत्स, भ्राता, इत्यादि ।

तद्भव वे शब्द हैं जो या तो सीधे प्राकृत से हिंदी-भाषा मे आ गये हैं या प्राकृत के द्वारा संस्कृत से निकले हैं, जैसे, राय, खेत,दाहिना, किसान ।

1इसका अर्थ आगामी प्रकरण में लिखा जायगा । इस प्रकार के कई शब्द कई सदियों से भाषा में प्रचलित हैं। कोई कोई साहित्य के बहुत पुराने नमूनों में भी मिलते हैं, परंतु वहुतसे वर्तमान शताव्दि में आये हैं। यह भरती अभी तक जारी है। जिस रूप में ये शब्द आते हैं वह बहुधा सस्कृत की प्रथमा के एकवचन का है।