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(३) आज्ञार्थक—जिससे आज्ञा, विनती या उपदेश का अर्थ सूचित हेाता है; जैसे, यहाँ आओ। वहाँ मत जाना। माता-पिता का कहना मानो।
(४) प्रश्नार्थक—जिससे प्रश्न का बोध होता है; जैसे, यह लडका कौन है? यह काम कैसे किया जायगा?
(५) विस्मयादिबोधक—जो आश्चर्य, विस्मय, आदि भाव बताता है; जैसे, वह कैसा मूर्ख है! एँ! घंटा बज गया!
(६) इच्छाबोधक—जिससे इच्छा वा आशीष सूचित होती है; जैसे, ईश्वर सबका भला करे। तुम्हारी बढ़ती हो।
(७) संदेहसूचक—जो संदेह या संभावना प्रकट करता है; यथा, शायद आज पानी बरसे। यह काम उस लड़के ने किया होगा। गाड़ी आती होगी।
(८) संकेतार्थक—जिससे संकेत अर्थात् शर्त पाई जाती है, जैसे, आप कहें तो मैं जाऊँ। पानी न बरसता तो धान सूख जाता।

५०७—वाक्य में शब्दों का परस्पर ठीक-ठीक संबंध जानने के लिए उनकी एक दूसरे से अन्वय, एक दूसरे पर उनका अधिकार और उनका क्रम जानने की आवश्यकता होती है, इसलिए वाक्य-विन्यास में इन तीनों विषयों का विचार किया जाता है।

(क) दो शब्दों में लिंग, वचन, पुरुष, कारक, अथवा काल की जो समानता रहती है उसे अन्वय कहते हैं; जैसे, छोटा लड़का रोता है। इस वाक्य में "छोटा" शब्द का "लड़का" शब्द से लिंग और वचन का अन्वय है; और "रोता है" शब्द "लड़का" शब्द से लिंग, वचन और पुरुष में अन्वित हैं।
(ख) अधिकार इस संबंध को कहते हैं जिसके कारण किसी एक शब्द के प्रयोग से दूसरी संज्ञा या सर्वनाम किसी विशेष कारक में आती है; जैसे, लड़का बंदर से डरता है।