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कोठा झाड़ा होगा, यदि मैंने उसे देखा होता तो मैं उसे अवश्य बुलाती।

५१६—सप्रत्यय कर्त्ता-कारक केवल नीचे लिखी संयुक्त सकर्मक क्रियाओं के भूतकालिक कृदंत से बने हुए कालों के साथ आता है—

(क) अनुमति-बोधक—उसने मुझे बोलने न दिया और न वहाँ रहने दिया।

(ख) इच्छा-बोधक—हमने उसे देखा (देखना) चाहा, राजा ने कन्या लेनी चाही।

(ग) अवकाश-बोधक—(विकल्प से) जब वह पूर्वकालिक कृदंत के योग से बनती है; जैसे, मैंने उससे यह बात न कह पाई। (अथवा) मैं उससे यह बात न कह पाया। (अं॰—६३७)।

(घ) अवधारण-बोधक—जब उसका उत्तरार्द्ध सकर्मक होता है; जैसे, लड़के ने पाठ पढ़ लिया, उसने अपने साथी को मार दिया, नौकर ने चिट्ठी फाड़ डाली, हमने सो लिया, इत्यादि।

५१७—प्राचीन हिंदी के पद्य में और बहुधा गद्य में भी सप्रत्यय कर्त्ता-कारक का प्रयोग बहुत कम मिलता है, जैसे, "सीतहिं चितै कही प्रभु बाता", "संन्यासियन मेरे विल तें सब धन काढ़ि लिये (राज॰)।

(२) कर्म-कारक

५१८—कर्म-कारक का प्रयोग बहुधा सकर्मक क्रिया के साथ होता है और कर्त्ता-कारक के समान वह दो रूपों में आता है—(१) अप्रत्यय (२) सप्रत्यय।

अप्रत्यय कर्म-कारक से नीचे लिखे अर्थ सूचित होते हैं—

(क) मुख्य कर्म—राजा ने ब्राह्मण को धन दिया, गुरु शिष्य को गणित पढ़ाता है, नट ने लोगों के खेल दिखाया।