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पहर को घर मे थे, राम वन को गये, हस्तिनापुर को चलिये। वह कचहरी को नहीं आया।

[सू॰—कभी-कभी इस अर्थ में कर्म-कारक की विभक्ति की लोप भी हो जाता है; जैसे, हम घर गये, वह गाँव में रात रहा, गत वर्ष खूब वर्षा हुई, इसी देह से हम तुमको स्वर्ग भेजेंगे (सत्य॰)।]

५२६—कविता में ऊपर लिखे नियमों का बहुधा व्यतिक्रम हो जाता है, जैसे, नारद देखी विकल जयन्ता, जगत जनायो जिहिं सकल सो हरि जान्यो नाहिं। (सत॰)। किन्तु कभी हत-भाग्य नहीं सुख को पाता है (सर॰)।

(३) करण-कारक।

५२७—करण-कारक से नीचे लिखे अर्थ पाये जाते हैं—

(क) करण अर्थात् साधन—नाक से साँस लेते हैं, पैरों से चलते हैं, शिकारी ने शेर को बन्दूक से मारा, इत्यादि।

(ख) कारण—आपके दर्शन से लाभ हुआ, धन से प्रतिष्ठा बढ़ती है, वह किसी पाप से अजगर हुआ था।

[सू॰—इस अर्थ में कारण, हेतु, इच्छा, विचार आदि शब्द भी करण-कारक में आते हैं, जैसे, इस कारण से, इस हेतु से।]

(ग) रीति—लड़के क्रम से बैठे हैं, मेरी बात ध्यान से सुनो, उसने उनकी ओर क्रोध से दृष्टि की, नौकर धीरज से काम करता है।

[सू॰—(१) इस अर्थ में बहुधा रीति, प्रकार, विधि, भाँति, तरह, आदि शब्द करण-कारक में आते है। (२) अनुकरणवाचक शब्दों में इस कारक के योग से क्रियाविशेषण बनते है; जैसे, धर्म से, फक से, धडाम से।]

(घ) साहित्य—विवाह धूम से हुआ, आम खाने से काम या पेड़ गिनने से, सर्व्वसम्मति से निश्चय हुआ, सबसो राखो प्रेम,