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उनसे मेरा संबंध है, घी से रोटी खाना, हम यह बात धर्म से कहते हैं।

(ङ) विकार—हम क्या से क्या हो गये, वह आदमी शूद्र से क्षत्रिय बन गया ; मनुष्य बालक से वृद्ध होता है, इत्यादि।

(च) दशा—शरीर से हट्टा-कट्टा, स्वभाव से क्रोधी, हृदय से दयालु, इत्यादि।

[सू॰—इस अर्थ में करण-कारक का प्रयोग बहुधा विशेषण के साथ होता है।]

(छ) भाव और पलटा—गेहूॅ किस भाव से बिकता है, तुमने व्याज किस हिसाब से लिया, वे अनाज से घी बदलते हैं।

(ज) कर्मवाच्य, भाववाच्य और प्रेरणार्थक क्रिया का कर्त्ता-मुझसे चला नहीं जाता, राम से रावण मारा गया, यह काम किसी से न किया जायगा, राजा ने ब्राह्मण से यज्ञ करवाया, दासी से और कोई उपाय न बन पड़ा।

५२८—कहना, पूछना, बोलना, बकना, प्रार्थना करना, बात करना, आदि क्रियाओ के साथ गौण कर्म के अर्थ मे कारण-कारक आता है; जैसे, रानी ने दासी से सब हाल कहा, मैंने उससे लड़ाई का कारण पूछा, हम आप से इस बात की प्रतिज्ञ करते हैं, साथी नीच तुम्हारे मुझसे जब तब अनुचित बकते हैं (हिं॰ ग्रं॰)।

[सू॰—बताना क्रिया के साथ विकल्प से करण अथवा संप्रदान कारक आता है; जैसे, मैं तुमसे (तुमको) यह भेद बताता हूँ।]

५२९—प्राचीन कविता में इन क्रियाओं के साथ बहुधा सप्रदान-कारक आता है; जैसे, मोकहँ कहा कहब रघुनाथा (राम॰), बूझत यशुदहिं नंद डराई (व्रज॰)।

५३०—करण-कारक की विभक्ति का लोप हो जाने के कारण बल, भरोसे, सहारे, द्वारा, कारण, निमित्त, आदि शब्दों का प्रयोग