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धन के लिए मरा जाता है, हम अभी आश्रम के दर्शन को जाते हैं, लड़का विद्वान होने को विद्या पढ़ता है।

[सू॰—फल वा निमित्त के अर्थ में बहुधा क्रियार्थक का संज्ञा के संप्रदान कारक का प्रयोग होना है; जैसे, जा रहे हैं वीर लड़ने के लिए (हित॰), मुझे कहीं रहने के और बताइये (प्रेम॰), तुम क्या मुझे मारने को लाये हो (चंद्र॰)। "होना" क्रिया के साथ क्रियार्थक संज्ञा का संप्रदान-कारक तत्परता अथवा शेष का अर्थ सूचित करता है; जैसे, गाडी आने को है, बरात चलने को हुई, अभी बहुत काम होने को है, इत्यादि।]

(घ) प्राप्ति—मुझे बहुत काम रहता है, उसे भरपूर आदर मिला, लड़के को पढ़ना आता है, लिखना मुझे न आता है (सर॰)।

(ङ) विनिमय वा मूल्य—हमको तुम एक अनेक तुम्हें हम, जैसे को तैसा मिले, यह पुस्तक चार आने को मिलती है।

[सू॰—मूल्य के अर्थ में विकल्प से अधिकरण-कारक भी आता है; जैसे, यह पुस्तक चार आने में मिलती है। (अं॰—५४६-घ-सू॰)]

(च) मनोविकार—उसको देह की सुध न रही, तुमहिं न सोच सोहाग बल, करुणाकर कों करुणा कछु आई। इस बात में किसीको शंका न होगी, इत्यादि।

(छ) प्रयोजन—मुझे उनसे कुछ नहीं कहना है, उसको इसमे कुछ लाभ नही, तुमको इसमे क्या करना है?

(ज) कर्त्तव्य, आवश्यकता और योग्यता—मुझे वहॉ जाना चाहिये, यह बात तुमको कब योग्य है (शकु॰), ऐसा करना मनुष्यको उचित नहीं है, उनको वह जाना था।

(झ) अवधारणा के अर्थ में मुख्य क्रिया की क्रियर्थक संज्ञा के साथ संप्रदान-कारक आता है; जैसे, जाने को तो मैं जा सकता हूँ, लिखने को तो यह चिट्ठी अभी लिखी जायगी।