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(ग) चाहिये, उचित, योग्य, आवश्यक, सहज, कठिन आदि विशेषण; जैसे, अंतहुँ उचित नृपहिं बनवास, मुझे उपदेश नही चाहिये, मेरे मित्र को कुछ धन आवश्यक है, सबहिं सुलभ।

५३५—नीचे लिखी संयुक्त क्रियाओं के साथ उद्देश्य बहुधा संप्रदान-कारक में आता है—

(क) आवश्यकता-बोधक क्रियाएँ—जैसे, मुझे वहॉ जाना पड़ा, तुमको यह काम करना होगा, उसे ऐसा नहीं कहना था।

[सू॰—यदि इन क्रियाओं का उद्देश्य अप्राणिवाचक हो, तो वह अप्रत्यय कर्त्ता-कारक में आता है, जैसे, घटा बजना चाहिए, अभी बहुत काम होना है। चिट्ठी भेजी जाती थी।]

(ख) पड़ना और आना के योग से बनी हुई कुछ अवधारण-बोधक क्रियाएँ—जैसे, बहिन, तुम्हें भी देख पड़ेंगी ये सब बाते आगे ( सर॰), रोगी को कुछ न सुन पड़ा, उसकी दशा देखकर मुझे रो आया, इत्यादि।

(ग) देना अथवा पड़ना के योग्य से बनी हुई नाम-बोधक क्रियाएँ—जैसे, मुझे शब्द सुनाई पड़ा, उसे रात को दिखाई नहीं देता।

५३६—क्रिया की अवधि के अर्थ में उसका कर्त्ता संप्रदान-कारक में आता है; जैसे, मुझे सारी रात तलफते बीती, उनको गये एक साल हुआ, नौकर को लौटते रात हो जायगी, तुम्हें यहॉ कई दिन हुए, महाराज को आकर एक महीना होता है।

(५) अपादान-कारक।

५३७—अपादान-कारक के अर्थ और प्रयोग नीचे लिखे अनुसार होते हैं—

(क) काल तथा स्थान का आरंभ—वह लखनऊ से आया है, मैं कल से बेकल हूॅ, गंगा हिमालय से निकलती है।