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(ख) उत्पत्ति—ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए हैं, दूध से दही बनता है, कोयला खदान से निकाला जाता है, ऊन से कपड़े बनाये जाते हैं, दीपक तें काजल, प्रगट कमल कीच तें होय।

(ग) काल वा स्थान का अंतर—अटक से कटक तक, सबेरे से साँझ तक, नख से शिख तक, इत्यादि।

[सू॰—इस अर्थ में कभी-कभी "लेकर" ("ले") पूर्वकालिक कृदंत का प्रयोग किया जाता है, जैसे, हिमालय से लेकर सेतुबंध-रामेश्वर तक।]

(घ) भिन्नता--यह कपड़ा उससे अलग है, आत्मा देह से भिन्न है, गोकुल से मथुरा न्यारी।

(ड) तुलना—मुझसे बढ़कर पापी कौन होगा ? कुलिश अस्थि तें, उपल तें लोह कराल कठोर, भारी से भारी वजन, छोटे से छोटा प्राणी।

(च) वियोग—वह मुझसे अलग रहता है, पेड़ से पत्ते गिरते हैं, मेरे हाथ से छडी छूट पड़ी।

(छ) निर्द्धारण (निश्चित करना)—इन कपड़ो में से आप कौन सा लेते हैं, हिंदुओं में से कई लोग विलायत को गये हैं।

[सू॰—निर्द्धारण में बहुधा अधिकरण कारके भी आता है, जैसे, की तुम तीन देव महँ कोऊ। हिंदी के कवियों में तुलसीदास श्रेष्ठ है। अधिकरण अपादान के मेल से कभी-कभी "वहाँ होकर" का अर्थ निकलता है; जैसे, पानी नाली में से बहता है, रास्ता जंगल में से था, स्त्री कोठे पर से तमाशा देखती है, घोडे पर से=घोडे से।]

(ज) माँगना, लेना, लाना, बचना, नटना, रोकना, छूटना, डरना, छिपना, आदि क्रियाओं का स्थान वा कारण, जैसे, ब्राह्मण ने मुझसे सारा राज्य माँग लिया, गाड़ी से बचकर चलो, मैं लोटे