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से जल लेता हूॅ, तुम मुझे वहाँ जाने से क्यों रोकते हो? लड़का बिल्ली से डरता है।

[सू॰—"डरना" क्रिया के कारण के अर्थ में विकल्प से कर्म-कारक भी आता है; जैसे, मैं शेर को नहीं डरता, अभय होय जो तुमहिं डराई, इत्यादि।]

(झ) परे, बाहर, दूर, आगे, हटकर, आदि अव्ययों के साथ; जैसे ; जाति से बाहर, दिल्ली से परे, घर से दूर, गाँवसे आगे, सड़क से हटकर।

[सू॰—परे, बाहर और आगे संबंध कारक के साथ भी आते है, जैसे, ज्ञान के परे, गाँव के बाहर, सड़क के आगे । ]

(६) संबंध-कारक।

५३८—संबंध-कारक से अनेक प्रकार के अर्थ सूचित होते हैं, जिनका पूरा-पूरा वर्गीकरण कठिन है; इसलिए यहॉ केवल मुख्य- मुख्य अर्थ लिखे जाते हैं—

(क) स्व-स्वामिभाव*[१]—देश का राजा, राजा का देश, मालिक का घर, घर का मालिक, मेरा घर।

(ख) अंगांगिभाव—लड़के का हाथ, स्त्री के केश, हाथ की अँगुलियाॅ, दस पन्ने की पुस्तक, तीन खंड का मकान।

(ग) जन्य-जनक-भाव—राजा का बेटा, लड़के का बाप, तुम्हारी माता, ईश्वर की सृष्टि, जगत् का कर्त्ता।

(घ) कर्तृकर्मभाव—तुलसीदास की रामायण, रविवर्मा के चित्र, पुस्तक का लेखक, नाटक का कवि, बिहारी की सतसई।

(ङ) कार्यकारणभाव—सोने की अँगूठी, चॉदी का पलंग, मूर्त्ति का पत्थर, किवाड़ की लकड़ी, लकड़ी का किवाड़, मूठ की चाँदी।


  1. * स्व=धन, सम्पत्ति।