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(ढ) काल और वयस—एक समय की बात, दो हजार वर्ष का इतिहास, दस बरस की लडकी, छः महीने का बच्चा, चार दिन की चॉदनी।

(ण) अभेद किंवा जाति—असाढ़ का महीना, खजूर का पेड, फर्म की फॉस, चन्दन की लकड़ी, प्लेग की बीमारी, क्या सौ रुपये की पूँजी, क्या एक बेटे की सन्तान, पॉच रोटियों का एक कौर, जय की ध्वनि, "मारो-मारो" का शब्द, जाति का शूद्र, जयपुर का राज्य, दिल्ली का शहर।

(त) समस्तता—इस अर्थ मैँ किसी एक शब्द के सम्बन्ध-कारक के पश्चात् उसी शब्द की पुनरुक्ति करते हैं, जैसे, गाँव का गाँव, घर का घर, मुहल्ला का मुहल्ला, कोठा का कोठा। "यह वार्त्तिक, सारा का सारा, पद्यात्मक है" (सर॰)।

(थ) अविकार—इस अर्थ मे भी ऊपर की तरह रचना होती है; जैसे, मूर्ख का मूर्ख, दूध का दूध, पानी का पानी, जैसा का तैसा, जहॉ का तहॉ, ज्यों की त्यों, "मनुष्य अन्त मेँ कोरा का कोरा बना रहे" (सर॰), "नलवल जल ऊँचो चढै, अन्त नीच को नीच" (सत॰)।

(द) अवधारण—आम के आम, गुठलियों के दाम, बैल का बैल और डाँड़ का डाँड़, धन का धन गया और ऊपर से बदनामी हुई। घर के घर में लड़ाई होने लगी। बात की बात में=तुरन्त।

[सू॰—उपर्युक्त तीनों प्रकार की रचना में आकारान्त संज्ञा विभक्ति के योग से विकृत रूप में नहीं आती; पर बहुवचन मे और वाक्यांश के पश्चात विभक्ति आने पर नियम के अनुसार आ के स्थान में ए हो जाता है; जैसे, ये लोग खड़े के खड़े रह गये, लड़के कोठे के कोठे में चले गये, समाज के समाज ऐसे पाये जाते है, सारे के सारे मुसाफिर (सर॰)।]