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करण—कलम का लिखना, भूख का मारा, कल का सिला हुआ, "मोल को लीन्हो," चूने की छाप, दूध का जला।

अपादान—डाल का टूटा, जेल का भागा हुआ, बंबई का चला हुआ, दिसावर का आया हुआ।

(क) कई एक क्रियाओं और दूसरे शब्दों के साथ कालवाचक संज्ञाओं मे अपादान के अर्थ में संबंध-कारक पाता है; जैसे, बेटा, मैं कब की पुकार रही हूँ, वह कभी का आ चुका, मैं वहाँ सवेरे का बैठा हूँ, जन्म का दरिद्री, इत्यादि।

अधिकरण—ताॅगे का बैठना, पहाड़ का चढ़ना, घर का बिगड़ा हुआ, गोद का खिलाया लड़का, खेत का उपजा हुआ अनाज, इत्यादि।

५४१—क्रियाद्योतक और तत्कालबोधक कृदंत अव्ययों के साथ बहुधा कर्त्ता और कर्म के अर्थ में संबंध-कारक की "के" (स्वतंत्र) विभक्ति आती है, जैसे, सरकार अँगरेजी के बनाये सब कुछ बन सकता है (शिव॰), मेरे रहते किसी का सामर्थ्य नहीं है, इतनी बात के सुनते ही हरि बोले (प्रेम॰), राजा के यह कहते ही सब शांत हो गये।

५४२—अधिकांश संबंध-सूचकों के योग से संबंध-कारक का प्रयोग होता है (अं॰—२३३)।

५४३—संबंध (अं॰५३३), स्वामित्व और संप्रदान के अर्थ में संबंध-कारक का सम्बन्ध क्रिया के साथ होता है और उसकी "के" विभक्ति आती है; जैसे अब इनके कोई संतान नहीं है, मेरे एक बहिन न हुई (गुटका॰), महाजन के बहुत धन है, जिसके ऑखें न हों वह क्या जाने? नाथ, एक बड संशय मोरे (राम॰), ब्राह्मण यजमानों के राखी बाँधते हैं, मैं आपके हाथ जोडता हूॅ, हब्शी के तमाचा इस जोर से लगा (सर॰), भाग, कही नहिं मार दे घोडा तेरे लात।