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(३१)
तत्सम अर्द्धतत्सम तद्भव
कार्य कारज काज
पक्ष पंख, पाख
वायु बयार
अक्षर अच्छर अक्खर, आखर
रात्री रात
सर्व सब
दैव दई

(७) देशज और अनुकरणवाचक शब्द।

हिंदी में और भी दो प्रकार के शब्द पाये जाते हैं—

(१) देशज (२) अनुकरण वाचक।

देशज वे शब्द हैं जो किसी संस्कृत (या प्राकृत) मूल से निकले हुए नहीं जान पड़ते और जिनकी व्युत्पत्ति का पता नहीं लगता, जैसे—तेंदुआ, खिड़की, घूआ, ठेस इत्यादि।

ऐसे शब्दों की संख्या बहुत थोड़ी है और संभव है कि आधुनिक आर्य-भाषाओं की बढ़ती के नियमों की अधिक खोज और पहचान होने से अंत में इनकी संख्या बहुत कम हो जायगी।

पदार्थ की यथार्थ अथवा कल्पित ध्वनि को ध्यान में रखकर जो शब्द बनाये गये हैं वे अनुकरण-वाचक शब्द कहलाते हैं, जैसे—खटखटाना, धड़ाम, चट, आदि।

(८) विदेशी शब्द।

फारसी, अरबी, तुर्की, अँगरेजी आदि भाषाओं से जो शब्द हिंदी में आये हैं वे विदेशी कहाते हैं। अँगरेजी से आजकल भी शब्दों की भरती जारी है। विदेशी शब्द हिंदी में ध्वनि के अनुसार अथवा बिगड़े हुए उच्चारण के अनुसार लिखे जाते हैं। इस विषय का पता लगाना कठिन है कि हिंदी में किस किस समय पर कौन