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(झ) निश्चित काल की स्थिति—वह एक घंटे में अच्छा हुआ, दूत कई दिनों में लौटा, संवत् १९५३ में अकाल पड़ा था, प्राचीन समय में भेज नाम का एक प्रतापी राजा हो गया है।

५४७—भरना, समाना, घुसना, भिदना, मिलना, आदि कुछ क्रियाओं के साथ व्याप्ति के अर्थ में अधिकरण का चिह्न 'में' आता है जैसे, घड़े में पानी भरो, लाल में नीला रंग मिल जाता है, पानी धरती में समा गया।

५४८—गत्यर्थ क्रियाओं के साथ निश्चित स्थान की वाचक संज्ञाओं में अधिकरण कारक का 'में' चिह्न लगाया जाता है; जैसे, लड़का कोठे में गया, नौकर घर में नहीं आता, वे रात के समय गाँव में पहुँचे, चार जंगल में जायगा।

[सू॰—गत्यर्थ क्रियाओं के साथ और निश्चित कालवाचक संज्ञाओं में अधिकरण के अ में कर्म-कारक भी आता है (अं॰—५२५)। "वह घर को गया", और "वह घर में गया", इन दो वाक्यो में कारक के कारण अर्थ का कुछ अतर है। पहले वाक्य से घर की सीमा तक जाने का बोध होता है, पर दूसरे से घर के भीतर जाने का अर्थ पाया जाता है।]

५४९—"पर" नीचे लिखे अर्थ सूचित करता है—

(क) एकदेशाधार—सिपाही घोड़े पर बैठा है, लड़का खाट पर सोता है, गाड़ी सड़क पर जा रही है, पेड़ों पर चिड़ियाँ चहचहा रही हैं।

[सू॰—'में' विभक्ति से भी यही अर्थ सूचित होता है। "में" और "पर" के अर्थो में यह अंतर है कि पहले से अतस्थ और दूसरे से बाह्य स्पर्श का बोध होता है। यही विशेषता बहुधा दूसरे अर्थो में भी पाई जाती है।]

(ख) सामीप्याधार—मेरा घर सड़क पर है, लड़का द्वार पर खड़ा है, तालाब पर मंदिर बना है, फाटक पर सिपाही रहता है।

(ग) दूरता—एक कोस पर, एक एक हाथ के अंतर पर, कुछ आगे जाने पर, एक कोस की दूरी पर