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५५०—जहाँ, कहाँ, यहाँ, वहाँ, ऊँचे, नीचे, आदि कुछ स्थान-वाचक क्रिया-विशेषणों के साथ विकल्प से "पर" आता है; जैसे, पहले जहाँ पर सभ्यता हो अंकुरित फूली-फली (भारत॰), जहाँ अभी समुद्र है वहाँ पर किसी समय गल था (सर॰), ऊपरवाला पत्थर २० फुट से अधिक ऊँचे पर था (विचित्र॰)।

५५१—चढना, मरना (इच्छा करना), घटना, छोडना, वारना, निछावर, निर्भर, आदि शब्दों के येाग से बहुधा "पर" का प्रयोग होता है, जैसे पहाड़ पर चढना, नाम पर मरना, आज की काम कल पर मत छोडो, मेरा जाना आपके आने पर निर्भर है, तो-पर वारो उरवसी।

५५२—ब्रजभाषा में "पर" का रूप "पै" है, और यह कभी-कभी "से" का पर्याया होकर करण-कारक में आता है; जैसे, मोपै, चल्यो नाहिं जातु। कभी-कभी यह "पास" के अर्थ में प्रयुक्त होता है; "से-निज भावते पै अबही मोहि जाने (जगत्॰), हमपै एक भी पैसा नहीं है। इस विभक्ति का प्रयोग बहुधा कविता में होता है।

५५३—कभी-कभी 'में' और "पर" आपस में बदल जाते हैं; जैसे क्या आप घर पर (=घर में) मिलेंगे, नौकर दूकान पर (=दूकान में) बैठा है, उसकी देह में (=देह पर) कपडा नहीं है, जल मे (=जल पर) गाड़ी नाव पर, थल गाड़ी पर नाव।

५५४—अधिकरण-कारक की विभक्ति के साथ कभी-कभी अपादान और संबंध-कारकों की विभक्तियो का योग होता है*[१], और जिस


  1. * एक विभक्ति के पश्चात् दूसरी विभक्ति का योग होना दी भाषा की एक विशेषता है जिसके कारण कई एक वैयाकरण इस भाषा के विभक्ति-प्रत्ययो को स्वतंत्र अव्यय अथवा उनके अपभ्रंश मानते हैं। संस्कृत में विभक्ति के पश्चात् कभी-कभी दूसरा प्रत्यय तो आता है,—जैसे, अहंकार, ममत्व, आदि में—पर विभक्ति-प्रत्यय नहीं आता।