चौथा अध्याय।
उद्देश्य, कर्म और क्रिया का अन्वय।
(१) उद्देश्य और क्रिया का अन्वय।
५६४—जब अप्रत्यय कर्ता-कारक वाक्य का उद्देश्य होता है, तब उसके लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष होते हैं, जैसे, लड़का जाता है, तुम कब आओगे, स्त्रियाँ गीत गाती थीं, नौकर गाँव को भेजा जायगी, घंटी बजाई गई, इत्यादि, (अं॰—३६६, ३६७)।
[सू॰—संभाव्य भविष्यत् तथा विधिकाल के कर्तृवाच्य में और स्थितिदर्शक "होना" क्रिया के सामान्य वर्त्तमानकाल में लिंग के कारण क्रिया का रूपांतर नहीं होता; जैसे, लड़का जावे, स्त्रियाँ गीत गावे, हम यहाँ है, लड़की, तू जा।
५६५—आदर के अर्थ में एक वचन उद्देश्य के साथ बहुवचन क्रिया आती है; जैसे, मेरे बड़े भाई आये हैं, बोले राम जोरि जुग पानी, महारानी दीन स्त्रियों पर दया करती थीं, राजकुमार सभा मे बुलाये गये।
(क) कविता में कभी-कभी विधिकाल अथवा संभाव्यभविष्यत् का मध्यम-पुरुष अन्य-पुरुष उद्देश्य के साथ आता है; जैसे, करहु सो मम उर धाम, जरौ सुसंपति, सदन, सुख।
५६६—जब जातिवाचक संज्ञा के स्थान में कोई समुदायवाचक संज्ञा (एक-वचन में) आती है, तब क्रिया का लिंग-वचन समुदाय-वाचक संज्ञा के अनुसार होता है; जैसे, सिपाहियों को एक झुंड जा रहा है, उनके कोई संतान नहीं हुई, सभा में बहुत भीड़ थी, इत्यादि।